Friday, July 1, 2011

कभी वो लौटकर आएगी

चार घडी थी वो दिन
मुस्कुराते हुए आयी
पहली नज़र में तूफान लाकर
मुझसे वो टकराई
ऐसे थे वो प्यार के लम्हे
मुझको तो मदहोश कर दिया
चल अकेला साथ चल अब
उसने मुझे प्रपोज़ कर दिया
मैं था नाज़ुक नासमझ
बहकावे में आ गया
क्या पता वह चार घड़ी
सुबह को चली जाएगी
सुबह सुबह होने वाली थी
वह भी तो जाने वाली थी
उसने मुझे विश्वाश दिलाया
मैं फिर मिलने आउंगी
उसके इंतज़ार में आज
कितने घड़िया बीत गयी
आंस लगाकर बैठा हूँ
कभी वो लौटकर आएगी  

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