Friday, April 22, 2011

****चढ़ती उम्र***युवा विशेष***

चढ़ती उम्र अवस्था में आदमी के भीतर कुछ खास करने की कमज़ोरिया  होती हैं, वह काम करने की शक्ति और सामर्थ्य तो रखता हैं उसे शक्ति और प्रेरणा तो होती हैं लेकिन बिचार और व्यवहार में स्थिरता का आभाव रहता हैं ,बिचारो में अस्थिरता ,उग्रता और निर्णय में त्वरित परिवर्तन चढ़ती उम्र की खास कमजोरिय होती हैं ऐसे समय में धर्य का आभाव होता हैं /
इससे लोगो की विश्वास प्राप्त करने में वह असमर्थ रहता हैं ,इसका मूल कारण यह हैं की इस अवस्था में बूधि और  बिचार परिपक्व नहीं हो पाते, इसी  अपरिपकता के कारण चढ़ती उम्र में स्थायी कारण की ज़गह त्रिवता होती हैं ///
       ज़वानी के दिन बहुत ही महत्वपूर्ण हुआ करते हैं ,ऐसे समय में आदमी का ध्यान हमेशा अपने कर्तव्यों की ओर होना चाहिए,बात यह हैं की युवा अवस्था में आदमी ताकत और छमता हुआ करती हैं ,इस समय जो काम वह अपने मन में ठान लेगा ,उसे कर गुजरने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता ,यह वही समय हैं जिस पर संपूर्ण भविष्य खड़ा हो सकता हैं ,ऐसे समय में आदमी छामतायो का उपयोग करे तो वह धन मान यश अर्जित कर लेगा ,बाद में वह चलकर कुछ भी करना चाहेगा तो संभव नहीं होगा ////
         युवा काल के आदमी के भीतर कोमल श्रिंगार की कालिया खिलती हैं ,अगर ऐसे समय में उसके पाँव फिसले तो समझिये वह गया काम से ///
हर उम्र की औकात होती हैं ,युवा काल अपने भीतर चंचल औकात रखता हैं जो चढ़ती उम्र के समय शांत चित बनाये रखता हैं ,उसी को हम शांति चित कह सकते हैं क्योकि ऐसे समय में चंचल होने की पूरी संभावना और शक्ति बनी रहती हैं ,ऐसे समय आदमी अपनी अपनी प्रकृति को कोमल बनाये रखे तभी उसकी कोमलता की पहचान होगी,लेकिन 40 वर्ष के बाद चित में शांति आ ही जाएगी, तो उसे शांत नहीं कहा जा सकता ,उस समय तो संपूर्ण इन्द्रिय अपने आप शांत हो जाया करती हैं ,तब आदमी के निकट स्वयं ही शांति आ जाती हैं ///

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