Friday, December 26, 2014

ये पढ़कर आप भी कह उठेंगे ‘जिय हो बिहार के लाला’

बिहार की गिनती कई वर्षों से बीमारू राज्यों में की जाती रही है. राजनीति के चक्कर में इसकी सांस्कृतिक समृद्धि की चमक फीकी पड़ गई है. इससे उन लोगों की शान में भी कमी आई है जिन्होंने इसे प्रसिद्धि के उच्चतर शिखर पर पहुँचाया था. असंतुलित राजनीति को अगर एक किनारे छोड़ कर देखा जाय तो बिहार की प्रसिद्धि के कारणों पर जम चुकी मैल परत दर परत साफ होते जायेगी और फिर वो चीजें साफ-साफ दिख जायेगी जिन्होंने बिहार को विश्व के नक्शे पर एक गौरवशाली पहचान दी. इसके साथ ही उन कारणों की भी एक झलक मिल जायेगी जिसके कारण बिहार के निवासी खुद को बिहारी कहलाने में गर्व का अनुभव करते हैं.
  • बिहार से भारतीय प्रशासनिक सेवा में शामिल होने वाले अधिकारियों की संख्या केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश और गुजरात से शामिल होने वाले कुल अधिकारियों की संख्या से भी अधिक है.
  • बिहारयों के चिकित्सक बनने की संख्या पंजाबी और गुजरातियों की कुल संख्या से भी अधिक है.
  • आगे और भी है-

    लज़ीज़ व्यंजन-
    बिहारी व्यंजन केवल देख भर लेने से ही लोगों के मुँह से पानी गिराने की क्षमता रखते हैं. लेकिन इन व्यंजनों में स्वाद के अलावा वर्षों से चली आ रही रस्मों-रिवाज़ की भी झलक मिलती है. कुछ मिठाईयाँ तो इतनी आकर्षक होती है कि उन्हें देखते ही खुद-ब-खुद चखने को जी मचलने लगता है. स्वादिष्ट बिहारी व्यंजनों की सूची में मशहूर लिट्टी-चोखा के अलावा दाल पिठ्ठा, मालपुआ, ख़ाजा, तिलकुट और मखाना आदि शामिल हैं.




    समृद्ध विरासतें-
    बिहार के प्राचीन व ऐतिहासिक स्मारक बिहारी विरासत को समृद्ध बनाते हैं. नालंदा विश्वविद्यालय में विश्व के नामी-गिरामी लोगों का आकर पढ़ना इसकी शैक्षिक महत्ता को दर्शाते हैं. इसके अलावा बिहार में भ्रमण के लिए और भी कई रमणीय स्थल हैं. इनमें आनंद स्तूप में अवस्थित अशोक स्तंभ, पटना संग्रहालय, बुद्ध स्मृति पार्क और महाबोधि मंदिर आदि हैं. बिहार के ये स्थान विविधापूर्ण भारतीय संस्कृति की झलक प्रस्तुत करते हैं.


    पर्व-त्योहार और विश्व प्रसिद्ध मेले-
    बिहार उन श्रेष्ठ राज्यों में शुमार है जहाँ विश्व प्रसिद्ध त्योहारों को मानने और मनाने की वर्षों पुरानी परंपरा रही है. आज भी इन त्योहारों में लोगों की आस्था पूर्ववत बनी हुई है. बिहारी पर्वों की लंबी सूची में छठ, तीज़, सेमा-चकेवा, जितिया, मधु-श्रावणी और चित्रगुप्त पूजा आदि शामिल हैं. ये त्योहार बेहद कर्णप्रिय लोकगीतों के कारण भी प्रसिद्ध हैं. इसके अलावा बड़े स्तर पर बिहार के सोनपुर में लगने वाला पशु मेला अब भी विश्व समुदाय के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. वहीं हर वर्ष गया में लगने वाले पितृपक्ष मेले में देश-विदेश में रहने वाले लोग शामिल होते हैं. जहाँ एक ओर भारत तेजी से सांस्कृतिक-सामाजिक बदलाव के मुहाने पर जा खड़ा हुआ है वहाँ अब भी बिहारियों ने अपने इन पर्व-त्योहारों द्वारा अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संजोये रखा है और उसे लगातार बढ़ाने में कामयाब रहे हैं.
  • साहित्य-
    जहाँ एक ओर रामधारी सिंह दिनकर रचित ‘कुरूक्षेत्र’ तेजी से बढ़ रही असमानता के भयावह परिणामों से रूबरू करवाती है वहीं फणीश्वरनाथ रेणु रचित ‘मैला आँचल’ सामाजिक बुराईयों का दर्शन करवाती है. इसके अलावा नागार्जुन की कविता जहाँ भ्रष्टाचारियों पर करारा व्यंग्य करती है वहीं विद्यापति की कविताओं में स्त्री-चित्रण की झलक मिलती है. दिनकर ने अपनी रचना कुरूक्षेत्र में विश्व की समस्याओं को प्रस्तुत करते हुए इनके स्रोतों पर कुठाराघात करते हुए विश्व को कठोर संदेश है.


    कला-
    बिहार की मधुबनी चित्रकला का उल्लेख किये बगैर भारतीय कला की बात हमेशा अधूरी ही रहेगी. बिहार के मैथिल-भाषी जिलों में जन्मी इस चित्रकला ने बिहार ही नहीं समूचे भारतवर्ष को विश्व के मानस-पटल पर गौरवान्वित किया है.


    पवित्र धार्मिक स्थल-

    बिहार की धरती कई महान विभूतियों की कर्मस्थली रही है. चाहे वो बोधगया हो जहाँ महात्मा बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया अथवा वैशाली जहाँ जैन-संप्रदाय के तीर्थंकर महावीर का जन्म हुआ. इसके अलावा सिक्खों के दसवें गुरू ‘गुरू गोविंद सिंह’ का जन्म भी बिहार में ही हुआ. जो स्थान विभिन्न संप्रदाय को अस्तित्व में लाने वाले या आगे बढ़ाने वाले लोगों की जन्मस्थली या कर्मस्थली रही है उसकी महत्ता खुद-ब-खुद बढ़ जाती है.
  • महान व्यक्ति-
    बिहार की मिट्टी पर अनेक विभूतियों की जन्म हुआ जिनके कारण बिहार का अतीत अत्यंत गौरवशाली हो पाया. इनमें चंद्रगुप्त मौर्य, अशोक, रामधारी सिंह दिनकर, बिस्मिल्लाह खान, राजेंद्र प्रसाद, जय प्रकाश नारायण मुख्य रूप से शामिल हैं.

    तो गर्व कीजिये अपने बिहारी और उससे बढ़कर भारतीय होने में!

Friday, December 19, 2014

सम्राट अशोक हों या मोदी, नींद में छिपा है कामयाबी का राज!

कामयाब लोग इतना कम क्यों सोते हैं? इस बात का जवाब खोजना अब मुश्किल नहीं रहा. अतीत और वर्तमान के खज़ाने से हमने निकाले हैं ऐसे हीरे, जिनकी नींद के घंटे बेहद कम हैं, लेकिन उनके काम इतने बड़े रहे कि उनका कद छूना मुश्किल है
अंतिम मौर्य सम्राट अशोक
41/2 घंटे
सम्राट अशोक सोने से पहले नहाते, खाते और फिर कुछ पढ़ते हुए संगीत की मधुर स्वरलहरी के साथ नींद के आगोश में चले जाते थे. सुबह जागने पर वे राजकाज से जुड़े मामलों पर विचार-विमर्श करते और जासूसों को काम देकर रवाना करते. सूर्यास्त से पहले वे पुरोहित, वैद्य, मुख्य रसोइए और ज्योतिषी से मिलते थे.
अकबर
31/2 घंटे
अकबर खुद भी जागते और उनके साथ दरबार के कवि, संगीतकार और विद्वान भी जागते. सम्राट जहांगीर ने कभी अपने वालिद के बारे में कहा था: ‘वे अपने समय के हर पल का बहुत ध्यान से इस्तेमाल करते हैं. वे बहुत कम सोते हैं और नींद में भी जैसे जाग रहे होते हैं.’
शाहरुख
3-4 घंटे

शाहरुख निशाचर के तौर पर जाने जाते हैं. वे तड़के तक जगे रहते हैं और नींद नहीं आने की अपनी बीमारी को हंसकर उड़ा देते हैं. वे कहते हैं, ‘मेरे लिए तीन से चार घंटे की नींद काफी है.’


इंद्रा नुई
4 घंटे

पेप्सीको की अध्यक्ष और सीईओ इंद्रा नुई आज दुनिया के चंद बड़े प्रबंधकों में से एक हैं. सुनने में आया है कि कभी उन्होंने कहा था कि यदि वे चार घंटे से अधिक सोया करतीं तो आज ‘‘कूप मंडूक’’ होतीं.
इंदिरा गांधी
4 घंटे

इंदिरा गांधी इमर्जेंसी के बाद चुनाव हारीं और फिर उन्होंने अपने लिए कठिन दिनचर्या तय की. वे लगातार दौरे करतीं, भाषण देतीं और रात में चार घंटे से भी कम सोतीं. फिर भी, अगले दिन सुबह एकदम तरोताजा दिखतीं. कभी उन्होंने खुद कहा था, ‘थकान मानसिक अवस्था है और शरीर से इसका कोई लेना-देना नहीं है.’



प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
3-4 घंटे

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की असाधारण कार्यशैली ने वरिष्ठ अफसरशाहों के बीच ‘‘देर रात सोने और सुबह जल्दी उठ जाने’’ के सूत्र को खासा लोकप्रिय कर दिया है. प्रधानमंत्री कहते हैं, ‘डॉक्टरों की सलाह है कि मैं पांच घंटे सोऊं, लेकिन मैं ज्यादा से ज्यादा तीन-चार घंटे सोता हूं.’

महात्मा गांधी
4 घंटे

महात्मा गांधी रात 11 बजे बिस्तर पर जाते और आधी रात तक कुछ-न-कुछ पढ़ते रहते. तड़के 3 से 4 बजे के बीच जाग जाते और 4:30 तक प्रार्थना करते. उन्होंने कहा था ‘हर रात जब मैं सोने जाता हूं, मेरी मृत्यु हो जाती है. और जब अगली सुबह जागता हूं तो मेरा पुनर्जन्म होता है.’

संकल्प और सफलता: जिन्होंने खुद लिखी अपनी तकदीर...

ठोस इरादों के दम पर शून्य से शि‍खर तक पहुंचे लोग पूरे देश में हैं. जानिए ऐसे ही 28 लोगों की प्रेरक दास्तान.
विजय साम्पला, 53 वर्ष
केंद्रीय मंत्री

घर की गाड़ी चलाए रखने की खातिर प्लंबर से लेकर इलेक्ट्र्शियन तक का काम किया. आज पंजाब की होशियारपुर सीट से सांसद और केंद्रीय मंत्री हैं. एक समय था वे बासी रोटी को गीला करके खाते और अपना गुजारा करते थे.
स्मृति जुबिन ईरानी, 38 वर्ष
मानव संसाधन विकास मंत्री

दिल्ली के गरीब परिवार में पैदा हुई स्मृति ने गुरबत के दिनों में मैकडॉनल्ड्स में वेटर का काम किया. फिर मुंबई में धारावाहिकों में किस्मत चमकाई और अब राजनीति के सफर पर निकल चुकी हैं.
साध्वी सावित्री बाई फुले, 33 वर्ष
सांसद, बहराइच

बाल विवाह ने भी उनके कदम नहीं रोके और संन्यास लेकर वे समाज सेवा के क्षेत्र में आ गईं. तीन बार बहराइच जिला पंचायत की सदस्य, एक बार विधायक और अब पहली बार सांसद बनी हैं.
किंजल सिंह, 33 वर्ष
आइएएस अधिकारी और लखनऊ में विशेष सचिव

उनके डीएसपी पिता की हत्या उनके सहकर्मियों ने ही कर दी थी. पहले पिता और फिर मां का साया सिर से उठ जाने के बावजूद आइएएस बनने का सपना पूरा किया.
आर.सी. जुनेजा, 59 वर्ष
चेयरमैन, मैनकाइंड फार्मा

वे मामूली से मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव थे लेकिन उनके सपने बड़े थे. 1995 में मैनकाइंड फार्मा की स्थापना की और आज उनके पास 10,000 मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव्ज की फौज है.
सवजी भाई ढोलकिया, 51 वर्ष
हीरा व्यापारी

तेरह साल की उम्र में सूरत में हीरा कारीगर के तौर पर काम शुरू किया था, आज उनका 6,000 करोड़ रु. का हीरे का कारोबार है. इस दीवाली पर उन्होंने कर्मचारियों को गाड़ी और फ्लैट गिफ्ट किए थे.

सत्यजीत सिंह, 42 वर्ष
मखाना व्यवसायी
उन्होंने मखाने की मार्केटिंग की परंपरा शुरू की. 25 लाख रु. के निवेश से शुरू किए गए अपने कारोबार को उन्होंने 50 करोड रु. के सालाना टर्नओवर में बदल दिया.
निधि गुप्ता, 23 वर्ष
युवा उद्यमी

महज सवा लाख रु. की लागत से शुरू उनकी सोलर पावर प्लांट कंपनी आज 500 करोड रु. की हो चुकी है और पर्यावरण को स्वच्छ बनाने में महत्ती भूमिका निभाई है.
ए.एस. मित्तल, 61 वर्ष
ट्रैक्टर निर्माता

उनके सोनालिका ग्रुप की शुरुआत महज 5,000 रु की पूंजी से हुई थी. आज यह 5,000 रु. की कंपनी बन चुकी है.
कल्पना सरोज, 52 वर्ष
दलित महिला सीईओ

बाल विवाह, ससुराल वालों की प्रताड़ना और छुआछूत का सामना करने वाली लड़की आज कमानी ट्यूब्स की सीईओ हैं. 2013 में उन्हें पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया था.
नंद किशोर चौधरी, 61 वर्ष
रग्स कारोबारी

उनके जयपुर रग्स का कारोबार 40 देशों में फैला है. कंपनी का सालाना टर्नओवर 140 करोड़ रु. है. खास यह कि उन्हें अपने घर में प्रवेश के लए नहाने को बाध्य किया गया था क्योंकि उन्होंने बुनकरों के साथ भोजन किया था.
रजनी बेक्टर, 82 वर्ष
हॉबी के तौर पर शुरू किया गया उनका कारोबार आज 700 करोड रु. से भी ज्यादा का हो चुका है. दुनियाभर के फूड रिटेल मिसेज बेक्टर्स क्रेमिका के सॉस का इस्तेमाल कर रहे हैं और यह कारोबार उन्होंने अपने आंगन से शुरू किया था.
बहादुर अली, 58 वर्ष
पोल्ट्री कंपनी के मालिक

उनके आइबी ग्रुप की शुरुआत 100 मुर्गियों के साथ हुई थी. आज कंपनी 3,000 करोड़ रु की हो चुकी है. यह भारत की तीसरी बड़ी कुक्कुट पालन कंपनी है. लेकिन एक समय था जब वे साइकिल के पंक्चर लगाया करते थे.
सौरभ मुखर्जी, 37 वर्ष
पूंजी सलाहकार

पंद्रह साल की उम्र में उन्होंने स्कूल जाने के साथ-साथ इंग्लैंड में दुकानों की सफाई का काम भी किया. एशियामनी ने उन्हें देश का नं 1 इक्विटी रणनीतिकार बताया.
अरुणिमा सिन्हा, 26 वर्ष
एक पांव से एवरेस्ट फतह किया

इस वॉलीबॉल खिलाड़ी को लुटेरों ने चलती गाड़ी से फेंक दिया था और नतीजतन उनका एक पैर काट देना पडा. वे एवरेस्ट फतह करने वाली विश्व की पहली विकलांग महिला पर्वतारोही हैं.
रवींद्र जडेजा, 26 वर्ष
क्रिकेट खिलाड़ी

वॉचमैन के बेटे जडेजा ने रणजी में बेहतरीन प्रदर्शन किया था. प्रथम श्रेणी क्रिकेट में तीन तिहरे शतक मारने वाले वे एकमात्र भारतीय खिलाड़ी हैं. आइपीएल में सबसे महंगे भी बिक चुके हैं. लेकिन एक समय था उनके पिता उन्हें साइकिल तक नहीं दिला सके थे.
राम सरन वर्मा, 48 वर्ष
करोड़पति किसान

खेती में नए-नए प्रयोग, उन्होंने इसे लाभ का पेशा बना दिया. वे एक लाख से ज्यादा किसानों को उन्नत खेती का प्रशिक्षण दे चुके हैं और गुजरात सरकार ने उन्हें कृषि विभाग का सलाहकार बनाया है. उन्होंने अपने गांव की ऐसी तकदीर बदली कि अब शहर के लोग उनके गांव काम करने आते हैं.
प्रकृति चंद्रा, 16 वर्ष
आइ डोनेशन मोटिवेटर

महज चार साल की उम्र में लोगों को नेत्रदान के लिए जागरुक करने का जिम्मा उठाया जो आज 12 साल बाद भी जारी है. उन्होंने 20,000 लोगों को नेत्रदान का लिखित शपथ पत्र देने को राजी किया.
बिंदेश्वर पाठक, 71 वर्ष
सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक

मैला ढोने वालों की नारकीय जिंदगी को बदलने का उन्होंने जिम्मा उठाया. उनकी संस्था देशभर में 13 लाख घरेलू और 8,500 सामुदायिक शौचालय बना चुकी है.
दिलअफरोज काजी, 52 वर्ष
शिक्षा उद्यमी

बचपन में लड़कियों की अनदेखी के लिए अपनों से लड़ीं. एक समय था वे गुजारे के लिए फिरन सिलती थीं, और उन्हें एक फिरन के लिए सात रु. मिलते थे. श्रीनगर में 30 एकड़ में फैला कॉलेज जिसमें इंजीनियरिंग मास्टर डिग्री की पढ़ाई. हरियाणा के पलवल में सिर्फ कश्मीरियों के लिए मैनेजमेंट और टेक्नोलॉजी कॉलेज. आज वे शिक्षा के क्षेत्र में जाना-माना नाम हैं.
कपिल शर्मा, 33 वर्ष
स्टैंड अप कॉमेडियन

उन्होंने पूल पार्लर से लेकर एसटीडी बूथ तक पर काम किया. लेकिन 2007 में द ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैलेंज में जीत के बाद उनकी तकदीर बदल गई. उन्होंने 2011 में स्टार या रॉकस्टार में गायिकी और दूसरे नंबर पर रहे. लेकिन कॉमेडी नाइट्स विद कपिल ने उन्हें शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचा दिया.
नवाजुद्दीन सिद्दीकी, 40 वर्ष
ऐक्टर

एक समय था जब उन्हें अपना जीवन चलाने के लिए दिल्ली के शाहदरा में चौकीदारी तक करनी पड़ी थी. मुंबई पहुंचे तो औसत दिखने की वजह से डायरेक्टर उनका टैलेंट देखने की बजाय चेहरा देखकर मना कर देते. लेकिन पीपली लाइव (2010) में उनकी क्षेत्रीय पत्रकार की ऐक्टिंग ने उनकी तकदीर ही बदल थी और वे एक जाना-माना नाम बन गए.
बमन ईरानी, 55 वर्ष
ऐक्टर

उन्होंने बतौर वेटर करियर की शुरुआत की. फिर फोटोग्राफी में नाम और पैसा कमाने के लिए भी काफी चक्कर काटने पड़े. विधु विनोद चोपड़ा से पहली मुलाकात हुई तो विधु ने उन्हें मिलते ही दो लाख रु. का चेक पकड़ाकर कहा कि तुम मेरी फिल्म में काम करोगे.
ममता शर्मा, 34 वर्ष
गायिका

उन्होंने 10 की उम्र से ही जगरातों और माता की चौकियों में गाना शुरू कर दिया था. वे बिना किसी सहारे के मुंबई पहुंची और यहां हर तरह के विपरीत हालात से निबटते हुए उन्होंने खुद को बॉलीवुड में स्थापित किया और वे दबंग के मुन्नी बदनाम के साथ स्टार सिंगर बन गईं.
नरेंद्र सिंह नेगी, 65 वर्ष
लोकगायक

1982 में दोस्तों से पैसे उधार लेकर कैसेट के 500 प्रिंट लिए और अपनी पहली कैसेट निकाली. हालांकि उन्हें विद्रोही तेवरों के लिए दिक्कतों का सामना करना पड़ा. 2004 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार की रेवड़ियों की तरह बांटी गई लालबत्तियों के विरोध में गीत लिखा तो नौकरी से इस्तीफा देना पड़ा. लेकिन उस गीत ने नेगी को सितारा बना दिया.
सुबोध गुप्ता, 50 वर्ष
कलाकार

दुनिया भर में जाने-माने इस कलाकार ने बिहार से दिल्ली आने पर थिएटर और फिल्मों में भी काम किया. हालांकि पारंपरिक चित्रकार से बर्तनों का चितेरा बनना शुरू में लोगों को समझ में नहीं आया. वैसे उन्होंने मशहूर चित्रकार एम.एफ. हुसैन के दर तक को ठुकरा दिया था.
सब्यसाची मुखर्जी, 40 वर्ष
फैशन डिजाइनर

उनके पेरेंट्स चाहते थे कि वे इंजीनियर बनें इसलिए वे उनके फैशन डिजाइनर बनने के सख्त खिलाफ थे. लेकिन उन्होंने इस कोर्स के लिए अपनी किताबें तक बेच डालीं. आज उनकी कंपनी का सालाना टर्नओवर 110 करोड़ रु. का है.
आसिफ अली, 40 वर्ष
रंगकर्मी

नाट्यलेखन के लिए उन्हें 2006 में बिस्मिल्लाह खान अवार्ड मिला. लेकिन एक समय था कि उन्हें रंगमंच की दुनिया में जाने के लिए अपने पिता को राजी करने में खासी जद्दोजहद करनी पड़ी थी.

Thursday, December 18, 2014

ये चन्द पंक्तियाँ जिसने भी लिखी है खूब लिखी है



एक पथ्थर सिर्फ एक बार मंदिर
जाता है और भगवान बन जाता है ..
इंसान हर रोज़ मंदिर जाते है फिर
भी पथ्थर ही रहते है ..!!

एक औरत बेटे को जन्म देने के लिये
अपनी सुन्दरता त्याग देती है.......
और वही बेटा एक सुन्दर बीवी के लिए
अपनी माँ को त्याग देता है

जीवन में हर जगह हम "जीत" चाहते हैं...
सिर्फ फूलवाले की दूकान ऐसी है
जहाँ हम कहते हैं कि "हार" चाहिए।
क्योंकि हम भगवान से "जीत"
नहीं सकते।

धीमें से पढ़े बहुत ही अर्थपूर्ण है यह
मेसेज...
हम और हमारे ईश्वर,
दोनों एक जैसे हैं।
जो रोज़ भूल जाते हैं...
वो हमारी गलतियों को,
हम उसकी मेहरबानियों को।

एक सुविचार
वक़्त का पता नहीं चलता अपनों के
साथ.....
पर अपनों का पता चलता है, वक़्त के
साथ...
वक़्त नहीं बदलता अपनों के साथ,
पर अपने ज़रूर बदल जाते हैं वक़्त के
साथ...!!!

ज़िन्दगी पल-पल ढलती है,
जैसे रेत मुट्ठी से फिसलती है...
शिकवे कितने भी हो हर पल,
फिर भी हँसते रहना...क्योंकि ये
ज़िन्दगी जैसी भी है,
बस एक ही बार मिलती है।

Friday, December 5, 2014

आदमी से लेकर मुर्गे की चोंच खाने वाले तानाशाह..

एडोल्फ हिटलरएडोल्फ़ हिटलर और उनके जैसे अन्य तानाशाहों के बारे में आप जानते ही होंगे. लेकिन आपको शायद नहीं पता होगा कि वो खाते क्या थे.
आइए इस नज़र ड़ालते हुए दुनिया भर में मशहूर तानाशाहों के खाने से जुड़ी आदतों के बारे में.
आप क्या खा रहे हैं. आप कैसे खा रहे है और आप किसके साथ खा रहे हैं. खाने का आपके मूड, आपकी अंतड़ियों और आपके नजरिए पर प्रभाव पड़ता है. विक्टोरिया क्लार्क और मेलिसा स्कॉट ने डिक्टेटर डिनर्स: अ बैड टेस्ट गाइट टु इंटरटेनिंग टाइरेंट्स के नाम से किताब लिखी है.
यह दुनिया के मशहूर तानाशाहों के पसंदीदा खाने, उनके खाने के तरीक़े और खाने को लेकर बरती जाने वाली सतर्कता को लेकर है.
आयु बढ़ने के साथ-साथ बहुत से तानाशाहों की चिंता अपने खाने की शुद्धता को लेकर बढ़ती गई. उत्तर कोरिया के किम इल सुंग के लिए चावल अलग से पैदा किया जाता था, जो ख़ास उनके लिए ही था. उन्होंने एक संस्थान बनवाया था, जिसका काम उनके जीवन को लंबा बनाने की तरकीबें सुझाना था.
सद्दाम हुसैन
रोमानिया की कम्युनिस्ट पार्टी के प्रमुख निकोलाई चाऊशेस्कू अपनी विदेश यात्रा के दौरान अपने खाने-पीने का सभी सामान अपने साथ ले जाकर मेज़बानों को चिढ़ाते थे. पड़ोसी देश यूगोस्लाविया के प्रमुख टीटो सब्जी के जूस को स्ट्रॉ से पीने की उनकी ज़िद देखकर हैरान रह गए थे.
अधिकांश तानाशाह नीचा दिखाने वाले और असभ्य थे. इसका मतलब यह होता है कि उनका पसंदीदा भोजन कुछ भी हो सकता है लेकिन बड़े और जाने माने रसोइयों द्वारा बनाया भोजन वो नहीं खा सकते थे.
तमाम विलासिताओं के बावज़दू टीटो को सूअर की चर्बी के टुकड़े बहुत पसंद थे. वहीं चाऊशेस्कू जब अपने घर पर होते थे तो मुर्गे का स्टू खाना पसंद करते थे, इस मुर्गे का कुछ भी फेंका नहीं जाता था, उसका पैर और चोंच तक पकाया जाता था.
पुर्तगाल के कैथोलिक एंटोनियो सालाज़ार को एक ख़ास तरह की मछली पसंद थी, जो उन्हें उनके बचपन की ग़रीबी की याद दिलाती थी. बचपन में एक मछली को उन्हें अपने सभी भाई-बहनों के साथ मिल-बांटकर खाना पड़ता था.
मशहूर तानाशाह एडोल्फ़ हिटलर, माओ त्से तुंग और बेनीटो मुसोलिनी को लगता था कि जो भारी-भरकम ज़िम्मेदारियां उन्होंने ले रखी हैं, उसका असर उनके पाचन तंत्र पर पड़ रहा है.
गैस की बीमारी की वजह से हिटलर शायद शाकाहारी हो गए थे. उन्होंने थियोडोर मारेल नाम के एक डॉक्टर को 28 अलग-अलग दवाओं के साथ हमेशा अपने साथ रहने का आदेश दिया था. इनमें से एक दवा बुल्गारिया के किसानों के 'मल' से बनती थी.
वहीं लगता है कि लीबिया के तानाशाह मुअम्मर गद्दाफ़ी अपने दुखों की वजह से शांत रहते थे. द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान मुसोलिनी की जांच करने वालों डॉक्टरों ने बताया था कि वो भयानक रूप से कब्ज़ से पीड़ित थे.
माओ त्से तुंग मांस खाने के बड़े शौकीन थे. अपने शुरुआती दिनों में अपने एक साथी को लिखे पत्र में उन्होंने लिखा था,'' मैं खाता भी अधिक हूं और निकालता भी अधिक हूं.'' एक बार जब वो स्टालिन से मिलने के लिए सोवियत संघ गए तो वहां उन्हें यह देखकर बहुत गुस्सा आया कि मास्को में उकड़ू होकर बैठने वाला शौचालय नहीं था.
स्टानिल अपने निजी निवास कुंटसेवो डाचा में खाने के समय स्वादिष्ट जार्जियन व्यंजनों से सजे खाने की मेज पर पांच-छह घंटे तक बैठे रहते थे.
फ्रेडिनिडा और इमेल्डा मार्कोस को स्टालिन के पावर प्ले से थोड़ा कम अनुभव था. इमेल्डा मार्कोस ने एक बार फिलीपींस की सेना के सभी बड़े अधिकारियों को अपने पति के जन्मदिन पार्टी के लिए एक तरह के कपड़े पहनकर आने का आदेश दिया.
शाकाहारी हिटलर खाने के मेज पर अपने साथियों से इस बात पर चर्चा किया करते थे कि यूक्रेन के बूचड़खाने में क्या चल रहा है, यह एक ऐसा विषय था जिसकी वजह से उनका मांसाहारी मेहमान अपने खाने को पूरा नहीं खा पाता था.
वहीं सेंट्रल अफ़्रीका रिपब्लिक के जीन बेडेल बोकासा, ऊगांडा के ईदी अमीन, इक्वोटोरियल गुएना के फ़्रांसिस्को नग्यूमा के नरभक्षी होने का संदेह था.
हम आपको चावल के साथ मानव अंगों को पकाने की विधि तो नहीं बता सकते हैं, जिसका हवाला बोकासा के एक पूर्व रसोइए ने दिया है. हालांकि यह रसोइया यह नहीं याद कर पाया कि जब बोसाका ने मानव अंगों से बनने वाले इस पकवान को उसे बनाने का आदेश दिया था, जिस शव से उसने इसे बनाया था वह महिला का था पुरुष का.
हम जिन तानाशाहों की बात कर रहे हैं, वो खाने से पहले अनिवार्य रूप से खाना चखने वालों को बुलाते रहते थे. पूरे युद्ध के दौरान हिटलर के पास 15 महिलाओं की एक टीम थी, जो उनका खाना चखती थी. ये महिलाएं जब खाना चख लेती थीं, उसके 45 मिनट बाद ही हिटलर को वह खाना परोसा जाता था.
इराक़ के पूर्व राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन ने अपने बेटे उदय को एक बार मारपीट कर जेल में इसलिए डाल दिया था, क्योंकि उन्होंने अपने पिता के एक खाना चखने वाले की हत्या कर दी थी.
रोमानिया के कम्युनिस्ट नेता निकोलाइ चाऊशेस्कू अपने उच्च पदस्थ सुरक्षा अधिकारी के बिना कभी यात्रा नहीं करते थे. उनका यह सुरक्षा अधिकारी एक केमिस्ट भी था, वो खाने की जांच करने वाली सचल प्रयोगशाला के साथ चलता था.
अंत में हमें यह भी पता है कि खाना चखने वालों की फौज, केमिस्ट, खाने का शौक और झक्कीपन भी इन तानाशाहों को बचा नहीं सका. अंत में इन सबकी मौत हुई और कुछ की मौत तो भयावह हुई.