Friday, February 17, 2012

हिली की सबसे ख़ूनी लड़ाई


हिली में पाकिस्तानी टैंक के सामने खड़े भारतीय सैनिक अधिकारी. (तस्वीर: भारत-रक्षक डॉट कॉम)
मेजर जनरल लक्षमण सिंह दूसरे विश्व युद्ध मे भाग ले चुके हैं और अपने 40 साल के सैनिक करियर में उन्हे कई लड़ाइयों में भाग लेने का अनुभव है.
वह 1971 में 20वीं पर्वतीय डिवीजन के कमांडर थे जिन्होंने हिली की लड़ाई में हिस्सा लिया था.
इस लड़ाई को 1971 की सबसे ख़ूनी लड़ाई कहा जाता है. मानेक शॉ और जगजीत सिंह अरोड़ा चाहते थे कि भारतीय फ़ौज हिली पर कब्ज़ा करे ताकि पूर्वी पाकिस्तान में मौजूद पाकिस्तानी सेना को दो हिस्सों में बाँटा जा सके.
लक्ष्मण सिंह और उनके कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल थापन दोनों इस हमले के ख़िलाफ़ थे, क्योंकि उन्हें पता था कि पाकिस्तान ने वहाँ ज़बरदस्त मोर्चाबंदी कर रखी है. अगर भारत हमला करता है, तो ज़बरदस्त घमासान होगा और बहुत से लोग हताहत होंगे.
पाकिस्तानी बलों की कमान थी ब्रिगेडियर तजम्मुल हुसैन मलिक के हाथ में, जिन्होंने चार दिन पहले ही वहाँ का चार्ज लिया था. वह पश्चिमी पाकिस्तान में सेना मुख्यालय में तैनात थे और उन्होंने ख़ुद इच्छा प्रकट की थी कि वह पूर्वी पाकिस्तान में लड़ने जाना चाहेंगे.
इस लड़ाई की शुरुआत युद्ध की औपचारिक घोषणा से 10 दिन पहले 23 नवंबर को ही हो गई थी.
तजम्मुल हुसैन मलिक
तजम्मुल हुसैन मलिक ने अंत तक हथियार नहीं डाले
पाकिस्तानी ब्रिगेडियर तजम्मुल हुसैन मलिक ने पूरी भारतीय डिवीजन और मुक्ति बाहिनी के सैनिकों का सामना किया.
पहले ही हमले में भारत के 150 सैनिक मारे गए. कड़ा प्रतिरोध होता देख भारत ने अपनी रणनीति बदली और उन्होंने हिली को बाईपास कर पाकिस्तानी बलों के पीछे ठिकाना बना कर उनपर दोतरफ़ा हमला शुरू कर दिया.
इस लड़ाई में भारतीय सेना के इंजीनयरों ने ख़ासा महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. फुलवारी की महत्वपूर्ण रेलवे लाइन के पास जब भारतीय सैनिक पहुँचे तो उन्होंने पाया कि पाकिस्तानियों ने पूरी की पूरी रेलवे लाइन उड़ा दी है और भारतीय सेना के भारी औज़ार ज़मीन में धंस रहे हैं.
सेना के इंजीनयरों ने स्थानीय लोगों की मदद से लगातार 48 घंटे काम कर रेलवे ट्रैक को एक मोटर चलने लायक़ सड़क में तब्दील कर दिया. जब उस सड़क से होकर भारतीय तोपें वहाँ पहुँचीं तो पाकिस्तानी सैनिक दंग रह गए.

भैंसों के सींग में तोपें

"मुझे याद है, हमने एक पाकिस्तानी सिपाही को वायरलेस पर अपने अफ़सर को कहते सुना कि भारतीय तोपों से हमला कर रहे हैं. अफ़सर ने कहा कि वह बकवास न करे. ऐसा कैसे हो सकता है? इतने बड़े दलदल और बारूदी सुरंगों के बीच भारतीय अपनी तोपें कैसे ला सकते हैं? वह भैंसे होंगीं. पाकिस्तानी जवान ने जवाब दिया, सर तब यह समझिए कि इन भैंसों के सींगों में 100 एमएम की तोपें लगी हुई हैं और वह एक-एक करके हमारे बंकरों को ध्वस्त कर रहे हैं"
लक्ष्मण सिंह
लक्ष्मण सिंह याद करते हैं, "मुझे याद है, हमने एक पाकिस्तानी सिपाही को वायरलेस पर अपने अफ़सर को कहते सुना कि भारतीय तोपों से हमला कर रहे हैं. अफ़सर ने कहा कि वह बकवास न करे. ऐसा कैसे हो सकता है? इतने बड़े दलदल और बारूदी सुरंगों के बीच भारतीय अपनी तोपें कैसे ला सकते हैं? वह भैंसे होंगीं. पाकिस्तानी जवान ने जवाब दिया, सर तब यह समझिए कि इन भैंसों के सींगों में 100 एमएम की तोपें लगी हुई हैं और वह एक-एक करके हमारे बंकरों को ध्वस्त कर रहे हैं."
ढाका में पाकिस्तानी सेना के हथियार डालने के बाद भी मलिक ने हार नहीं मानी. वह अपना जीप में घूम-घूम कर अपने सैनिकों को लड़ने के लिए प्रोत्साहित करते रहे.
जब वह चारों तरफ़ से घेर लिए गए तो उन्होंने अपनी ब्रिगेड को आदेश दिया कि वह छोटे-छोटे टुकड़ों में बंट कर नौगांव की तरफ़ बढ़ने की कोशिश करें, जहाँ अब भी कुछ पाकिस्तानी सैनिक प्रतिरोध कर रहे थे.
लेकिन रास्ते में मुक्ति बाहिनी के सैनिकों ने उनकी जीप पर गोलियाँ चलाईं, जिसमें मलिक बुरी तरह से घायल हो गए और उनका अर्दली मारा गया. मुक्ति बाहिनी ने उन्हे भारतीय सेना के हवाले करने से पहले काफ़ी यातनाएं दीं.
लक्षमण सिंह ने आदेश दिया कि घायल मलिक को उनके सामने पेश किया जाए. लक्ष्मण ने उनसे पूछा कि भागने का ख़याल आपके मन में कैसे आया. आपके गोरे रंग को देखते हुए लोगों को तो पता चल ही जाना था कि तुम पाकिस्तानी हो.
लक्ष्मण सिंह
हिली में भारत की कमान संभाली थी मेजर जनरल लक्ष्मण सिंह ने
मलिक ने जवाब दिया, "आप ही जो सिखाते हैं कि किसी हालत में क़ैद नहीं होना चाहिए और भागने की कोशिश करनी चाहिए. आप सीनियर ऑफ़िसर हैं. आप ही बताओ मैं क्या करता."
लक्षमण ने जवाब दिया भागने का विकल्प तभी चुनना चाहिए जब सफलता की काफ़ी गुंजाइश हो.
मलिक को पकड़ भले ही लिया गया हो लेकिन उन्होंने ख़ुद हथियार नहीं डाले. ब्रिगेड का आत्मसमर्पण कराने के लिए मेजर जनरल नज़र अली शाह को ख़ास तौर से नटौर से हेलिकॉप्टर से लाया गया.
लक्ष्मण सिंह याद करते हैं कि जनरल शाह इतने मोटे थे कि हेलिकॉप्टर की सीट बेल्ट उन्हें फ़िट नहीं आई और उन्हें बैठाने के लिए दो सीट बेल्टों का इस्तेमाल करना पड़ा.
ब्रिगेडियर मलिक पाकिस्तानी सेना के अकेले अधिकारी थे जिन्हें बांग्लादेश से वापस आने के बाद पदोन्नति दे कर मेजर जनरल बनाया गया.

अद्वितीय बटालियन कमांडर

मैंने मेजर जनरल लक्ष्मण सिंह से पूछा कि आप ब्रिगेडियर मलिक को एक सैनिक कमांडर के रूप में किस तरह रेट करेंगे?
लक्ष्मण सिंह का जवाब था, "बटालियन कमांडर के रूप में वह अद्वितीय थे. उन्होंने न सिर्फ़ दूसरों को लड़ने के लिए प्रेरित किया बल्कि ख़ुद भी जी-जान से लड़े. लेकिन उनमें दूरदृष्टि नहीं थी. जैसे उन्होंने मुझसे कहा कि नवंबर में जो आपने हमला किया था उसके बाद तो आप डर ही गए. इधर उधर दौड़ते रहे और सड़कें काटने की कोशिश करते रहे. मैंने उनसे कहा तजम्मुल, सेना में प्लानिंग जैसी भी कोई चीज़ होती है. हमने हमला इसलिए किया कि तुम सब हिली में जमा हो जाओ और बाक़ी मोर्चे कमज़ोर हो जाएं. आप लोग हिली में बैठे रहे और हमने 50 मील पीछे जा कर मुख्य सड़क काट दी. इस सबके लिए एक अच्छा दिमाग़ चाहिए. अगर तुम्हारा डिवीजनल कमांडर अच्छा होता तो शायद तुम्हारा यह हश्र नहीं होता."
हिली की लड़ाई इसलिए भी महत्वपूर्ण थी, क्योंकि इसमें दोनों पक्षों ने असीम निजी वीरता का परिचय दिया. लाँस नायक एल्बर्ट एक्का को मरणोपरांत भारत का सबसे बड़ा वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र मिला.
पाकिस्तान की तरफ से मेजर मोहम्मद अकरम को उनकी बहादुरी के लिए सर्वोच्च वीरता पुरस्कार निशान-ए-हैदर दिया गया.

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