बिहार की गिनती कई वर्षों से बीमारू राज्यों में की जाती रही है. राजनीति के चक्कर में इसकी सांस्कृतिक समृद्धि की चमक फीकी पड़ गई है. इससे उन लोगों की शान में भी कमी आई है जिन्होंने इसे प्रसिद्धि के उच्चतर शिखर पर पहुँचाया था. असंतुलित राजनीति को अगर एक किनारे छोड़ कर देखा जाय तो बिहार की प्रसिद्धि के कारणों पर जम चुकी मैल परत दर परत साफ होते जायेगी और फिर वो चीजें साफ-साफ दिख जायेगी जिन्होंने बिहार को विश्व के नक्शे पर एक गौरवशाली पहचान दी. इसके साथ ही उन कारणों की भी एक झलक मिल जायेगी जिसके कारण बिहार के निवासी खुद को बिहारी कहलाने में गर्व का अनुभव करते हैं.
- बिहार से भारतीय प्रशासनिक सेवा में शामिल होने वाले अधिकारियों की संख्या केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश और गुजरात से शामिल होने वाले कुल अधिकारियों की संख्या से भी अधिक है.
- बिहारयों के चिकित्सक बनने की संख्या पंजाबी और गुजरातियों की कुल संख्या से भी अधिक है.
- आगे और भी है-लज़ीज़ व्यंजन-बिहारी व्यंजन केवल देख भर लेने से ही लोगों के मुँह से पानी गिराने की क्षमता रखते हैं. लेकिन इन व्यंजनों में स्वाद के अलावा वर्षों से चली आ रही रस्मों-रिवाज़ की भी झलक मिलती है. कुछ मिठाईयाँ तो इतनी आकर्षक होती है कि उन्हें देखते ही खुद-ब-खुद चखने को जी मचलने लगता है. स्वादिष्ट बिहारी व्यंजनों की सूची में मशहूर लिट्टी-चोखा के अलावा दाल पिठ्ठा, मालपुआ, ख़ाजा, तिलकुट और मखाना आदि शामिल हैं.समृद्ध विरासतें-बिहार के प्राचीन व ऐतिहासिक स्मारक बिहारी विरासत को समृद्ध बनाते हैं. नालंदा विश्वविद्यालय में विश्व के नामी-गिरामी लोगों का आकर पढ़ना इसकी शैक्षिक महत्ता को दर्शाते हैं. इसके अलावा बिहार में भ्रमण के लिए और भी कई रमणीय स्थल हैं. इनमें आनंद स्तूप में अवस्थित अशोक स्तंभ, पटना संग्रहालय, बुद्ध स्मृति पार्क और महाबोधि मंदिर आदि हैं. बिहार के ये स्थान विविधापूर्ण भारतीय संस्कृति की झलक प्रस्तुत करते हैं.पर्व-त्योहार और विश्व प्रसिद्ध मेले-बिहार उन श्रेष्ठ राज्यों में शुमार है जहाँ विश्व प्रसिद्ध त्योहारों को मानने और मनाने की वर्षों पुरानी परंपरा रही है. आज भी इन त्योहारों में लोगों की आस्था पूर्ववत बनी हुई है. बिहारी पर्वों की लंबी सूची में छठ, तीज़, सेमा-चकेवा, जितिया, मधु-श्रावणी और चित्रगुप्त पूजा आदि शामिल हैं. ये त्योहार बेहद कर्णप्रिय लोकगीतों के कारण भी प्रसिद्ध हैं. इसके अलावा बड़े स्तर पर बिहार के सोनपुर में लगने वाला पशु मेला अब भी विश्व समुदाय के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. वहीं हर वर्ष गया में लगने वाले पितृपक्ष मेले में देश-विदेश में रहने वाले लोग शामिल होते हैं. जहाँ एक ओर भारत तेजी से सांस्कृतिक-सामाजिक बदलाव के मुहाने पर जा खड़ा हुआ है वहाँ अब भी बिहारियों ने अपने इन पर्व-त्योहारों द्वारा अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संजोये रखा है और उसे लगातार बढ़ाने में कामयाब रहे हैं.
- साहित्य-
जहाँ एक ओर रामधारी सिंह दिनकर रचित ‘कुरूक्षेत्र’ तेजी से बढ़ रही असमानता के भयावह परिणामों से रूबरू करवाती है वहीं फणीश्वरनाथ रेणु रचित ‘मैला आँचल’ सामाजिक बुराईयों का दर्शन करवाती है. इसके अलावा नागार्जुन की कविता जहाँ भ्रष्टाचारियों पर करारा व्यंग्य करती है वहीं विद्यापति की कविताओं में स्त्री-चित्रण की झलक मिलती है. दिनकर ने अपनी रचना कुरूक्षेत्र में विश्व की समस्याओं को प्रस्तुत करते हुए इनके स्रोतों पर कुठाराघात करते हुए विश्व को कठोर संदेश है.
कला-
बिहार की मधुबनी चित्रकला का उल्लेख किये बगैर भारतीय कला की बात हमेशा अधूरी ही रहेगी. बिहार के मैथिल-भाषी जिलों में जन्मी इस चित्रकला ने बिहार ही नहीं समूचे भारतवर्ष को विश्व के मानस-पटल पर गौरवान्वित किया है.
पवित्र धार्मिक स्थल-
बिहार की धरती कई महान विभूतियों की कर्मस्थली रही है. चाहे वो बोधगया हो जहाँ महात्मा बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया अथवा वैशाली जहाँ जैन-संप्रदाय के तीर्थंकर महावीर का जन्म हुआ. इसके अलावा सिक्खों के दसवें गुरू ‘गुरू गोविंद सिंह’ का जन्म भी बिहार में ही हुआ. जो स्थान विभिन्न संप्रदाय को अस्तित्व में लाने वाले या आगे बढ़ाने वाले लोगों की जन्मस्थली या कर्मस्थली रही है उसकी महत्ता खुद-ब-खुद बढ़ जाती है. - महान व्यक्ति-
बिहार की मिट्टी पर अनेक विभूतियों की जन्म हुआ जिनके कारण बिहार का अतीत अत्यंत गौरवशाली हो पाया. इनमें चंद्रगुप्त मौर्य, अशोक, रामधारी सिंह दिनकर, बिस्मिल्लाह खान, राजेंद्र प्रसाद, जय प्रकाश नारायण मुख्य रूप से शामिल हैं.
तो गर्व कीजिये अपने बिहारी और उससे बढ़कर भारतीय होने में!
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