पीछे जाती हुई पाकिस्तानी सेना ने पुलों के तोड़ कर भारतीय सेना की अभियान रोकने की कोशिश की लेकिन 13 दिसंबर आते-आते भारतीय सैनिकों को ढाका की इमारतें नज़र आने लगी थीं. (तस्वीर: गेटी)
तीन दिसंबर 1971 को पाकिस्तान की ओर से भारतीय ठिकानों पर हमले के बाद भारतीय सैनिकों ने पूर्वी पाकिस्तान को मुक्त कराने का अभियान शुरू किया. (तस्वीर: गेटी)
भारतीय सेना के सामने ढाका को मुक्त कराने का लक्ष्य रखा ही नहीं गया. इसको लेकर भारतीय जनरलों में काफ़ी मतभेद भी थे.
पाकिस्तान के पास ढाका की रक्षा के लिए अब भी 26400 सैनिक थे जबकि भारत के सिर्फ़ 3000 सैनिक ढाका की सीमा के बाहर थे. लेकिन पाकिस्तानियों का मनोबल गिरता चला जा रहा था.
1971 की लड़ाई में सीमा सुरक्षा बल और मुक्ति बाहिनी ने पाकिस्तानी सैनिकों के आत्मसमर्पण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
फिर भी यह एक तरफ़ा लडा़ई नहीं थी. हिली और जमालपुर सेक्टर में भारतीय सैनिकों को पाकिस्तान के कड़े प्रतिरोध का सामना करना पडा
लड़ाई से पहले भारत के लिए पलायन करते पूर्वी पाकिस्तानी शरणार्थी. एक समय भारत में बांग्लादेश के क़रीब डेढ़ करोड़ शरणार्थी पहुँच गए थे
ढाका के पास तंगेल पर नियंत्रण करने की ज़िम्मेदारी मुक्ति बाहिनी के कमांडर टाइगर सिद्दीक़ी को दी गई थी.
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