चार घडी थी वो दिन
मुस्कुराते हुए आयी
पहली नज़र में तूफान लाकर
मुझसे वो टकराई
ऐसे थे वो प्यार के लम्हे
मुझको तो मदहोश कर दिया
चल अकेला साथ चल अब
उसने मुझे प्रपोज़ कर दिया
मैं था नाज़ुक नासमझ
बहकावे में आ गया
क्या पता वह चार घड़ी
सुबह को चली जाएगी
सुबह सुबह होने वाली थी
वह भी तो जाने वाली थी
उसने मुझे विश्वाश दिलाया
मैं फिर मिलने आउंगी
उसके इंतज़ार में आज
कितने घड़िया बीत गयी
आंस लगाकर बैठा हूँ
कभी वो लौटकर आएगी
मुस्कुराते हुए आयी
पहली नज़र में तूफान लाकर
मुझसे वो टकराई
ऐसे थे वो प्यार के लम्हे
मुझको तो मदहोश कर दिया
चल अकेला साथ चल अब
उसने मुझे प्रपोज़ कर दिया
मैं था नाज़ुक नासमझ
बहकावे में आ गया
क्या पता वह चार घड़ी
सुबह को चली जाएगी
सुबह सुबह होने वाली थी
वह भी तो जाने वाली थी
उसने मुझे विश्वाश दिलाया
मैं फिर मिलने आउंगी
उसके इंतज़ार में आज
कितने घड़िया बीत गयी
आंस लगाकर बैठा हूँ
कभी वो लौटकर आएगी
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